द्रोणाचार्य पांडवो ओर कौरव के गुरु केसे बने? | kese bane dronachry pandoke guru?

द्रोणाचार्य पांडवो ओर  कौरव के गुरु केसे बने?

एक दिन सब पांडव कौरव मिलकर खेल खेल रहे थे। वह एक कपड़े की बनी गेंद से खेल रहेथे । खेल में वह एक दुजेको गेंद मारकर जिसे गेंद लगी वह खेल से बाहर हो जतहे इस प्रकार खेल रहेथे।वह जहां पर खेल रहे थे वहा पास ही पर एक कुवा था।
खेलते खेलते अचानक उनकी गेंद कुवेमे गिर जातिहे। सब राजकुमार कुवे के पास एकत्रित हो जाते है। वह अब गेंद केसे निकले इस पर विचार विमर्श करने लगते है। ओर अलग अलग प्रयास कर के वह गेंद निकालने की कोशिश करते है उनके सब  प्रयास में असफल होते है। ओर सब नाराज होकर वहा खड़े होते है।
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 द्रोणाचर्य कुमारोंसे मिले 

उसी समय एक ब्राम्हण की नजर उनापर गिरती हैं। वह ब्राम्हण उनके पास जाकर पूछा ता क्या हुआ है। सबकी नजर ब्राम्हण पर गिरती हैं।ब्राम्हण ने फटे पुराने कपड़े पहने होते है। बच्चें पहले तो चोक जाते है। फिर सारी बातें वह ब्राम्हण को बता दे ते है। उनकी बात सुनकर ब्राम्हण केहता हैं, "बच्चो कोई चिंता मत करो में तुम्हारी गेंद निकालकर दुगा।"
वह एक धनुष लेकर तीर चलाते है, वह तीर गेंद पे जाकर लगता है,फिर दूसरा तीर चलाते हैं वह पहले तीर पर जा के लग जाता हैं, वैसे तीसरा तीर चलाते हैं वह दूसरे तीर पर लग जाता हैं ,वैसे करते करते वह तिरोकी माला तयार करातेहे जो इतनी लंबी होती हैं की वह कुव के बाहर तक आ जातिहे हैं और वह तीर की माला ऊपर खींच कर गेंद को बाहर निकलते है। ओर वह गेंद को बच्चो को दे देते है। बच्चे खुशिसे खेलने जाते है।

द्रोणाचर्य और भीष्म की भेट 

जब शाम होने पर जब वह राज महल लोट जाते हैं । वह यह सारा वृत्तांत भीष्म  पितामह को बताते है। कुमा की बाते सुनकर वह समाज जाते है की, ब्राम्हण शश्र विद्याके बड़े जानकार है ,उनसे जरूर मिलना चाहिए।
भीष्म उन्हें खोजते हुए एक कुटिया में जाते है । वहा पर वह ब्राम्हण उन्हें मिलते है ,घर में तीन लोग होते है। उनकी परिस्थिति बड़ी गरीब होती है खाने के लिए ना अन्न होता है ,ना पहनने के लिए अच्छे कपड़े होते है। भीष्म उनसे पूछते है,"आप कोन है और कहा से आए है?"
ब्राम्हण केहते हैं " मेरा नाम द्रोणाचार्य है, ओर में राजा द्रुपद के राज्य से आया हूं।"
तब भीष्म कहते है"में आपकी परिस्थिति देखकर बोह्त व्यथित हूं,ओर कुमारों ने आपका दोपहरका कारनामा भी हमें बता या है, में आपकी मदद करना चहताहू ओर आपको राज आश्रय देना चाहता हू। इससे आपकी गरीबी  दूर हो जाए गी।"
इसपर द्रोणाचार्य बोलते है, "मुझे माफ़ कर दीजए ,ऐसा राज आश्रय में नहीं ले सकता जा हा पर मेरे ज्ञान का कोई उपयोग नहीं,उससे अच्छा में गरीब रेहाना पसंद करुगा।"

द्रोणाचर्य गुरु बने 

इस बात पर भीष्म समाज जाते है यह ब्राम्हण कोई साधारण नहीं बल की बड़े ज्ञानी है।
वह उनसे कहते है," आप बड़े ज्ञानी ब्राम्हण लगते है, में आपसे विनती करता हूं कि आप राजकुमारों के गुरु होना स्वीकार करे, जिससे आपका ज्ञान का फायदा उन्हें होगा ओर वह भी ज्ञानी होगे ओर अपभी गरीबी से बाहर निकाल आयेगे, कृपया मेरी यह विनती मान्य कीजिए ।"
उनकी यह बात सुनकर वह राजकुमारों के गुरु बनाना स्वीकार कर ते है।
तब से सारे राज कुमार उनके मार्ग दर्शन के निछे शिक्षा लेना शुरू कर दे ते है। इस प्रकार द्रोणाचार्य पांडव ओर कौरोवो के गुरु बन जाते हैं।

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