अश्वत्थामा को कृष्ण का शाप | krushanka ashwathama ko shap immortal ashwathama


अश्वत्थामा को कृष्ण का शाप | krushanka ashwathama ko shap immortal ashwathama

भीम की गदा का वार  दुर्योधन की जांग पे जब बैठा तब दुर्योधन वेदना असहनीय हो कर जमीन पे गिर गया।अब उसमे उठाने का भी बल नहीं रहा , पांडवों ने सोचा यह युद्ध का अंत है। ओर वह मरते हुए दुर्योधन को वहीं छोड़ कर चले आए।
काश उनका सोचना सही होता ।
काश......
पर नियती को यह मंजूर नहीं था। ओर जो होने वाला था शायद किसीने सोचा नहीं था।

अभिमन्यु का चक्रव्युह भेदन | Mahabharat me Abhimnuvyu ka Chakraviv Bhedana

अश्वत्थामा का दुर्योधन को वचन | ashwathama ka duryodhan ko vachan

अपने मित्र दुर्योधन  के बारेमे सुन अश्वत्थामा उससे मिलने गया। उसकी हालत देख वह दुखी एवं क्रोधित हुवा , तब मरते हुए दुर्योधन को उसने कहा," जिन्होने तुम्हारी ऐसी हालत की है उन पाचो पांडवो का सिर काट कर में तुम्हारे सामने प्रस्तुत करुगा । "
उसकी यह बात सुन दुर्योधन के मन मे फिर से पांडवो को मारने की लालसा जागी। उसने उसी समय अपनी बचे खुचे सहकरियोको जमा किया ओर अश्वत्थामा को विधिवत सेनापती बनाया। अब अश्वत्थामा के साथ कृपाचार्य औऱ कृतवर्मा यह दोनोंही बचे थे। दोनो भी अश्वत्थामा के साथ चल दिए। पांडवो की शिवर तक पोहचने से पहले वह रात्रि का विश्राम करने के लिए एक जगह रुक गए। कृपाचार्य ओर कृतवर्मा तो सो गए ,पर अश्वत्थामा को नींद नही आ रहीथी,उसका मन तो प्रतिशोध की ज्यावाला से भर गया था,पिता का प्रतिशोध जिन्हें अर्धम से मारा  गया था । मित्र का प्रतिशोध जिसे निहता देख मारा था।राजा का प्रतिशोध जिसे गदा युद्ध के नियम धूल में मिलाकर मारा गया था।
तभी अश्वत्थामा ने ठान ली में रात के समय ही उनपर आक्रमण करुगा ओर सारी पांडव सेना को नष्ट कर दुगा। उसने फिर कृपाचार्य को उठाया और अपना नियोजय बताया।
तब कृपाचार्य बोले,"अश्वत्थामा ,ऐसी बातें धर्म के विरोध  है, तुम तो एक महारथी हो जिन्हें सारी विद्या का ज्ञान है,तुम्हें यह शोभा नहीं देता।"
उनकी बाते सुन अश्वत्थामा आवेश में आकर बोला," कोनसे धर्म की आप बाते कर रहे है, वो धर्म कहा था जब मेरे पिता मारे गए,कर्ण मार गया, आप अब मुझे धर्म ना सिखाये, में उससे आगे बढ़ चुका हूं।"
ओर वह अपना शस्र लेकर पांडवो की शिविर की ओर बढ़ चला,अपने सेनापति के पीछे पीछे कृपाचार्य औऱ कृतवर्मा भी चलने लगे।

क्या अश्वत्थामा सही था ?
अच्छा काम कारने के लिए किसी गलत मार्ग से जाना और गलत काम करने के लिए कुछ अच्छे कारण देना इसमें कुछ तो अंतर होता है। हरि किसी के पास अपना कार्य करने के लिए ऐसा कारण जरूर होता है जिस से वह कार्य करना उसे उच्छित लगत हैं। पर क्या उस कारण के बुरे कार्य अछे कार्य मे बदल जाते है। अगर  किसिनी गलत कार्य किया  है इसका मतलब यह तो नही होता कि उसका गलत कार्य आपको गलत कार्य करनेकी अनुमति देगा । क्या पता, अपनी अपनी सोच।

अर्जुन की जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा और कृष्ण लीला। Arjun ki Jaydrat ko marneki pratigya or krushan lila

अश्वत्थामा का बदला

जब वह तीनो शिविर के निकट पहुचे तो कृपाचार्य औऱ कृतवर्मा बाहर रुक गए। अगर कोई भागने का प्रयास करे तो उसे मारने के लिए। अश्वत्थामा शिविर में घुस गया और वह सबसे पहले द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न के शिविर में घुसा ओर उसने सोते हुए धृष्टद्युम्न पर ऐसा वार किया के वह एक वार में ही मृत्यु  हो गया। इसके साथ ही अश्वत्थामा ने अपने पिता के मृत्यु का  बदला ले लिया। फिर वह पांडवो के शिविर में घुसा जहा पर द्रोपदी के पांच पुत्र सो रहे थे। उसने पाचोके सर काट दिए उसने सोचा कि वह पांडव है और खुश होकर वहासे चला गया।बाहर आकर उसने सारे शिविर में आग लगा दी ।जो दिखे उसे मारता गया, उस महारथी के सामने कोई टिक नही पाया और जो पलायन कर रहेथे उन्हें कृपाचार्य ओर कृतवर्मा ने मार गिराया। अश्वत्थामा कस रुद्र रूप देखकर सारे शिविर में हाहाकार मच गया। उसने जैसे खून की होली खेली।

फिर वह लौटकर दुर्योधन के पास आया और उसे बतायाकि की उसने पाचो पांडवोंको मार डाला है । यह बात सुनकर दुर्योधन बड़ा खुश हुवा ओर उसने अपने प्राण त्याग दिए।

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अश्वत्थामा अर्जुन का युद्ध | ashwathama or arjun ka yudh

जब सुबह यह बात पांडवो को पता चली तो वह गुस्से में आगये ओर अश्वत्थामा को ढूढने निकले। उनके साथ वासुदेव कृष्ण भी थे। उन्होंने बोहत ढूंढने के बाद उन्हें अश्वत्थामा ऋषि वेदव्यास के आश्रम में छुपा हुवा है यह पता चला और सब वेदव्यास के आश्रम के बाहर आये और उन्होंने अश्वत्थामा को ललकार ओर बाहर बुलाया। अश्वत्थामा भी बाहर आया । उसका और अर्जुन का युद्ध होने लगा। घमासान युद्ध हुवा ओर खुदको हारता देख , वह डर गया । कहतेहै "विनाश काले विपरीत बुद्धि" लेकिन यह उसका विनाश नहीत उससे भी बढ़कर होने वाला था । उसने डर कर ब्रम्हास्त्र छोड़ा और  कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भी ब्रम्हास्त्र छोड़ा। एक ही प्रकार शक्ति शाली अस्र जब एक दूजे को टकराये, तो मानो एसा लगने लगा कि प्रलय आने वाला है। यह देख कर ऋषी वेदव्यास ने दोनों को अपने अपने अस्र वापिस लनेको कहा ,अर्जुन ने ऋषि की बात सुन ली और अस्र वापस लिया पर अश्वत्थामा को यह पता नही था कि अस्र वापस कैसे लिया जाता है। ओर उसने उसे वापस लेनेमें असमर्थ ता दर्शायी । इस बात पर कृष्ण आगे आये और उन्होहे कहा ब्रम्हा अस्र विफल नही जा सकता। इस लिए इस अस्र का असर अभिमन्यु पत्नी उत्तराके गर्भ पे होगा ओर उसका पुत्र मृत पैदा होगा। इस प्रकार अश्वथामा का ब्रम्हास्र उत्तराके गर्भ पर अपना असर छोड़ा। अश्वत्थामा अब अपनी करनी से शर्मिंदा होते हुए माफी मांगने लगा।

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अश्वत्थामा  को शाप | ashwathama ko shap

अश्वत्थामा की यह सब हरकत देख ,वासुदेव कृष्ण क्रोधित हुए ओर उन्होंने कहा,"तुम्हणे जो कार्य किया है यह  किसी भी प्रकार से शमा योग्य नही है, इसलिए में तुम्हारे सिर पे लगा हुवा मनी जो तुम्हारे तेज का स्रोत है और तुम्हे महादेव द्वारा वरदान रूप में मिला है वह में नुकाल लेताहू ,"
और में तुम्हे शाप देता हु, " मनी की जखम कभी नही भरेगी ओर उससे खून निकता रहेगा ,वह दर्द लेकर तुम कलयुग के अंत तक जीवोगे।"
इस प्रकार अश्वत्थामा शाप के कारण अमर हो गया।

कुछ महिनो बाद  उत्तराको  मृत पुत्र पैदा हुवा। सब शोक करने लगे तब वासुदेव कृष्ण ने उसे अपने हात में लिया और कहा,"अगर आज तक मेने जो किया हैं वह सही किया है ,अगर आजतक मेरा हर कार्य धर्म के अनुरूप हो तो यह बालक जिंदा हो जाएगा।"
ओर बालक जिंदा हो जाता है और उसका नाम परीक्षित रखा जाता हैं।

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