अर्जुन की जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा और कृष्ण लीला। Arjun ki Jaydrat ko marneki pratigya or krushan lila


अर्जुन की जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा और कृष्ण लीला।


तेरहवे दिन का युद्ध समाप्त हो चुकाथा । अर्जुन अपनी विजय यात्रा समाप्त कर शिविर की ओर लौट रहे थे। आज के दिन भी अर्जुन ने अनेक रथी महारथियों को परास्त कियाथा। जब वह शिविर लोटे तो शिविर में वह चलह पहल नही थी जो रोज होती थीं। उन्हें कुछ अनहोनी की आकांक्षा हुई ,उन्हें लगा शायद युधिष्ठिर को तो कुछ नही हुवा ? लेकिन शिविर पोहचेने पर युधिष्ठिर को सही सलामत देख उनके जान में जान आई।


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अभिमन्यु का चक्रव्युह भेदन | Mahabharat me Abhimnuvyu ka Chakraviv Bhedana

अर्जुन की  प्रतिज्ञा | Arajun ki pratigya

सब अर्जुन की राह देख रहेथे। उनके मलिन चेहरे देख अर्जुन के मन को किसी अनजाने भय ने घेर लिया। जब अर्जुन और कृष्ण अपने रथ से उतरे तो अर्जुन ने अनायास ही अभिमन्यु के बारेमे पूछा। अभिमन्यु का नाम सुनतेही युधिष्ठिर की आँखे भर आई । अर्जुन के जोर देने पर युधिष्ठिर ने सारी कहानी अर्जुन को बताई। अपने प्रिय पुत्र की मृत्यु की बात सुन अर्जुन सुन हो गए। उनका शरीर बर्फ की तरह शीतल लगने लगा और उन्हें ऐसे अवस्था मे भी पसीना आने लगा ओर वह एका एक ही नीचे बैठ गए और रोने लगे। श्रीकृष्ण ने उन्हें धीरज बंधाया ओर कहा," है पार्थ संभालो अपने आप को वीरो की मृत्यु पर शोक नही मनाया करते, उसने अपने धर्म के लिये जान दी है और अभिमन्यु की वीर ताकि गाथा हजारो सालो तक गायी जाएगी।"

अर्जुन ने अपने आप को संभाला। अब उनके मन मे दुःख की जगह क्रोध बस गयाथा। उन सबके लिए जिन्होंने अकेले अभिमन्यु को मील कर मारा था। खास कर जयद्रथ के लिए जिसके कारण कोई और पांडव चक्रव्युह में नही घुस पाया। और उन्होंने प्रतिज्ञा की कल शाम तक मे जयद्रथ का वध कर दुगा,ओर ऐसा न कर पाया तो स्वयं को अग्नि में दहन कर लूंगा।


जयद्रथ के पिता का शाप | Jaydrath ke pita ka shap

यह बात वायु वेग से दोनों शिविरों में फेल गई। यह सुनकर दुर्योधन बड़ा खुश हुवा ,पर जयद्रथ डर गया। उसने कहा में अपने देश लोट जाता हूँ। पर दुर्योधन ने उसे धाडस बंधाया।
दुर्योधन जाणतात था, अर्जुन प्रतिज्ञा पूरी करे या न करे दोंनों स्तिथियों में विजय तो उसकी ही थी ,उसका कारण थे जयद्रथ के पिता वृद्धश्रवा।
श्रीकृष्ण को एक बात की चिंता थी। अगर अर्जुन जयद्रथ को मारनेमे सफल भी हो गया तो  उसके बाद क्या होगा?
जयद्रथ के पिता वृद्धश्रवा ने शाप दिया था कि जिसके कारण जयद्रथ का सर जमीन पे गिरेगा उसके सिर के सौ टुकड़े हो जायेंगे। कृष्ण ने अब उसपर भी मार्ग निकाल लिया था। कृष्ण ने अर्जुन को इस शाप के बारेमे बताया और कहा यहासे सौ योजन दूर वृद्धश्रवा तप कर रहे है अगर जयद्रथ का सिर उनकी गोद मे जाके गिरेगा तो किसीको कोई नुकसान नही होगा। उनकी मृत्यु का कारण भी तुम्ह नही बनोगे कीव की ये उनके ही कर्म होंगे जिसका फल उन्हें मिलेगा, ओर तुम्हे ब्रम्ह हत्या का पाप भी नही लगे गा। उनकी यह बात सुन अर्जुन आश्वस्त हो गया।

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कृष्ण लीला| krushna lila 

शंख की ध्वनि के साथ चौदह वे दिन का युद्ध शुरु हो गया। दुर्योधन ने जयद्रथ को रक्षको के बीच कई तो छुपायाथा। कृष्ण अर्जुन का रथ लेकर बड़े वेग से रणभूमि में दौड़ा रहे थे। लेकिन अर्जुन के सामने कोई ना कोई आहि जाता कृष्ण बड़ी सफाई से वहासे रथ निकल लाते। पर द्रोणाचार्य ,कर्ण, अश्वथामा, दुर्योधन सामने आते तो युद्ध ज्यादा देर तक चलता । लेकिन फिर भीम, सात्यकि यह भी अर्जुन की मदत के लिए आगे आ जाते। अर्जुन अपने सामने आते हर बाधा को पार कर आगे बढ़ रहे थे ,पर उन्हें जयद्रथ नही मिल रहाथा। अब सूरज ढलने लगाथा ओर पांडवों की सेना की चिंता  बढ़ने लगिथि ,दूसरी तरफ कौरवो की सेना खुश हो रहीथी।

अब स्वयं श्रीकृष्ण को अपनी लीला दिखाने का वक्त आ गया था। श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ सुर्य को इस प्रकार ढक लिया मानो शाम हो गई है और पूरी युद्ध भूमि में अंधेरा छा गयाथा। शाम हुई है यह देख युद्ध रुक गया । अब अर्जुन के लिए चिता सजाई गई। दोनो सेनाएं गोलाकार में अर्जुन को देखने के लिए खडी हो गई। अर्जुन को देखने के लिए अब जयद्रथ भी बाहर निकलकर आ गया था। अर्जुन  अब चिता पर जा के बैठने वाले थे तब कृष्ण ने उन्हें रोक ओर कहा ,"है पार्थ ,तुम क्षत्रिय हो ओर क्षत्रियो को बिना शस्र के कही भी नही जाना चाहिए ,चाहे वह चिता हो।" तब अर्जुन अपना धनुष औऱ तूणीर ले  कर चितामे जाकर बैठ गए।

अर्जुन द्वारा जयद्रथ का वध | Arajun dvara jaydrath ka vadh

तभी श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन वापस ले लिया। ओर चारो ओर उजाला हो गया । तब कृष्ण ने अर्जुन से कहा," देखो पार्थ अभी सूरज दिख रहाहै ओर जयद्रथ भी। उठाव अपना धनुष ओर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।"
इतना सुनतेही अर्जुन ने अपना धनुष उठाया, उसपर तीर चढ़ाया। यह सब देखकर जयद्रथ डर के मारे भागने लगा। पर अर्जुन की तीर उससे भी तेज था। अर्जुने तीर चलाया ओर देखते ही उसका सिर धडसे अलग हो गया। अर्जुन ने दूसरा तीर निकला ओर उसी वेगसे उसके सिर पर मारा । वह तीर जयद्रथ का सिर लेकर उसके पिता के गोदी में जा गिरा। अपने पुत्र का सुर देखकर वह चौक कर उठ गए ओर जयद्रथ का सिर नुचे धरती पर गिर गया और  उनके सुर के सौ टुकड़े हो गए।

दोनों ओर की सेना कुछ समज पाती उससे पहले ही जयद्रथ मारा गया था । ओर अब पांडव सेना हर्ष मना रहीथी ओर कौरव सेना कुछ समज नही पायी  थी। ओर इस बार सच का सुर्यास्त हो गयाथा।  यह पांडवों का जीत की ओर और एक कदम था।

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