क्यों किये भगवान विष्णु ने सती के शरीर के टुकड़े और केसे बने शक्तिपीठ? | kyo kiye bhagavan vishanune sati ke sharir ke tukade or kese bane shakti pith


क्यों किये भगवान विष्णु ने सती के शरीर के टुकड़े और केसे बने शक्तिपीठ?


जब ब्रम्हा जी ने आदि शक्ति ओर महादेव के विवाह के विषय में सोचा तो उन्होंने अपने पुत्र प्रजापति दक्ष को आदेश दिया कि वह देवी की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करे ओर उन्हें अपनी पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगे।
ब्रम्हा जी के आज्ञा के अनुसार दक्ष प्रजापति देवी की उपासना करते है ओर देवी उन्हें प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं कि वह उनके पुत्री के रूप में जन्म लेगी। 
लेकिन वह प्रजापति को कहतिए, " में हर  जन्म में महादेव की अर्धागिनी रहूंगी ओर   तब तक तुम्हारी पुत्री के रूप में रहुगी जब तक तुम्हारा तपस्या का पुण्य है ओर जब तुम्हारे द्वारा मेरा अपमान होगा तब में अपने धाम लोट जाउगी।"
उनकी यह बात दक्ष मान लेते है।

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महादेव 

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महादेव और सती विवाह 

उसके बाद आदि शक्ति दक्ष के घर जन्म लेती हैं। उनका नाम सती रखा जाता हैं। लेकिन उनको दिए गए वचन को दक्ष भूल जाते है। ओर सोचते हैं शिव किसी भी प्रकार से उनके लिए योग्य नहीं हैं। वह खुले में रहने वाला केसे मेरी पुत्री को सुख में रख पाएगा। इसलिए जब सती शादी के योग्य हो जाती हैं । तब  दक्ष उनके लिए स्वयंवर का आयोजन करते है। लेकिन सती उसके लिए इनकार करती हैं । लेकिन कुछ दिनों बाद सती के इच्छा विरोध उसका स्वयंवर आयोजित किया जाता हैं। उसमे महादेव को नहीं बुलाया जाता। लेकिन सती पहलेहि  महादेव को पति मान चुकी होती हैं। जब वह स्वयवर में जाती हैं तब वह शिवनाम का जप कर माला धरती पर फेक देती हैं ,तब स्वयं महादेव प्रकट होकर उन्हें अपने पत्नी के रूप में स्वीकार करते है ओर उन्हें अपने साथ कैलाश ले जाते है।
इस बात से  प्रजापति दक्ष दोनों पर कुपित हो जाते है।

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सती का हट 

कुछ दिनों बाद दक्ष के महल में एक यज्ञ का आयोजन किया जाता है जिसमें सारे देवी देवताओं को बुलाया जाता हैं ,सिर्फ शिव सती को छोड़कर । जब यज्ञ की बात सती सुनती है तब वह जाने का हट करती है  पर शिव कहते है," बिना निमंत्रण के हमें ऐसे कार्य में नहीं जाना चाहिए, इससे हमेशा हानी ही होती हैं।"
पर देवी कहती हैं," मुझे पता है हमें बुलाया नहीं गया, मेरे  पिताजी मुजसे रूष्ट है। लेकिन मुझे यह भी पता है, जब ओ मुझे देखेगे तो वह सारी कटुता भूल जाएंगे, ओ मुजस बेहत प्यार करते है।"
लेकिन शिव जी उनकी बात नहीं मानते ओर सती भी अपने हट पर अडिग रहती हैं। तब शिव जी उनकी बात मान कर उन्हें कुछ गनो के साथ भेज देते है ।

सती का शरीर त्याग 


जब देवी सती यज्ञ में जाती हैं तब उसे लगता है कि उसके पिता खुश हो जायेगे पर ऐसा नहीं होता। दक्ष जो अपने अहंकार में मदहोश होता है, वह सोचता है राज महल जैसे सुख उस निर्जन पर्वत पर केसे होगा, इसलिए यह यहां आयी हैं। ओर वह सती का सबके सामने अपमान करने लगता है। तब देवी सती यह सोच कर सुन लेती हैं कि आखिर वह मेरे पिता ही है। लेकिन दक्ष वहीं पर नहीं रुकता अब वह महादेव पर भी आरोप लगाने लगते है ओर उनके लिए झुटी ओर अर्थहीन बाते कहने लगते है। देवी सती महादेव का अपमान नहीं सह पाती ओर वह कहती है, " बस हो गया दक्ष अब में ओर महादेव के बारे मैं गलत बातें  नहीं सुन सकती, ओर अब मुझे इस दुनियां में भी नहीं रहा ना जहां पर मेरे महादेव पर ऐसा लांछन लगाया जाए ओर सब मुक हो कर सुनते रहे ,इस लिए में मेरा शरीर अग्नि को समर्पित कर प्राण त्याग रहिहू ।" ओर वह हवन के अग्नि में कूद जाती है ओर प्राण त्याग देती हैं।

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शिव का रोष 

यह बात गन जाकर शिव जी को बोलते है।तब शिव जी क्रोध में आकर वह अपनी एक जटा निकालकर उसे पत्थर पर जोरसे पटकते हैं ,तब वीरभद्र का जन्म होता है। वह उसे आज्ञा देते हैं कि दक्ष का सिर काट दिया जाए। वीरभद्र बड़े आक्रोश में दक्ष की ओर बढ़ता है तब दक्ष अपनी सेना भेजते है ।पर वीरभद्र  उनका  नाश कर देता है । तब इन्द्र ,अग्नि आदि देवता लड़ने के लिए जाते हैं ।पर ओ भी परास्त हो जाते है। तब दक्ष विष्णु से उसकी रक्षा की माग करता है तब नारायण अपनी नारायणी सेना भेजते है। लेकिन देखते देखते वह भी परास्त हो जाती हैं। ओर वीरभद्र यज्ञ मंडप में घुस आता है ओर दक्ष का सर काट कर उस अग्नि में डाल देता हैं। ओर वाहेस लुप्त हो जाता हैं।

यह सब हालत देख देवता डर जाते है। ओर सब मिलकर महादेव की स्तुति करने लगते हैं । महादेव उन्हें दर्शन देने आते है तब वह दक्ष को पुन्ह जीवित करने की प्रार्थना करते है। तब महादेव बकरे का सर उसे लगाकर दक्ष को जीवित करते हैं। ओर यज्ञ पूरा होने का आशीर्वाद देकर सती का शरीर लेकर चले जाते है।

विष्णु द्वारा सती के शरीर के टुकड़े और शक्तिपीठ 

वह सती का शरीर लेकर तीनों लोको में घूमने लगते हैं । उनके क्रोध अग्नि से समय से पहले प्रलय आने का डर देवताओं को सताने लगता है । तब वह भगवान विष्णु के पास जाते हैं। उन्हें अपनी समस्या बताते है। भगवान विष्णु समस्या का समाधान करने का वचन देते हैं।
तब भगवान विष्णु अपना सुदर्शन लेकर महादेव के पीछे पीछे चलते है ओर सुदर्शन छोड़कर सती के शरीर के टुकड़े करने लगते है ,महादेव को पता ना चले इसलिए वह छोटे छोटे टुकड़े करने लगते है ओर एक वक्त ऐसा आता है कि महादेव के हात में कुछ नहीं बचत तब वह रुक जाते है। ओर शांत होकर एक गुहा में जाकर ध्यान करने लगते है।
सती के शरीर के टुकड़े ओर आभूषण ऐसे ५१ जगह पर पूरे भारत में गिरते है। ओर उन्ह जगह की आज लोग पूज्य करते है । उन्हीं ५१ जगह को शक्तिपीठ कहा जाता हैं।

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