क्यों दिया राम ने लक्ष्मण को मृत्यु दंड? | Kyo diya ram ne lakshiman ko mrutuv dand?


क्यों  दिया राम ने लक्ष्मण को मृत्यु दंड?

एक दिन एक ऋषी श्री राम को मिलानेके लिए आते है। ऋषी मुनी का आदर सत्कार करते हूं ये वह ऋषी से आनेका प्रयोजन पूछते हैं। इस बात पर ऋषी कहते है कि में बड़े दूर से आया हूं ओर मुझे आपसे एकांत में बात करनी है बात अती महत्त्व पूर्ण है। राम ऋषी का आदर  करते हुए बोलते हैं जी हां हम दूसरे कक्ष में जा के बातें करते है। इस पर वह ऋषी कहते है जब हमारी बातें चल रही होगी तब कक्ष में कोई नहीं आयेगा ऎसी आप आज्ञा दीजिए। राम ऐसे ही आज्ञा देते है। पर इस पर भी उनका समाधान नहीं होता इसलिए वह कहते है जब हमारी बाते चल रही होगी तब अगर कोई अंदर आएगा तब आप उसे  मृत्यु दंड देगे। राम बोलते इस की को जरूरत नहीं ,पर ऋषी अपने बात पर अडिग रहते है। तब राम उनको वचन देते हैं जो अंदर आयेगा उसे वह मृत्यु दंड दीया जाए गा।
ram dvara laximan ko dand, laximan ka mrutuv
राम लक्ष्मण 


ऋषि दुर्वासाका  आगमन 

राम लक्ष्मण को सब बताते है ओर कहते है आप खुद ही द्वारपाल बन के खड़े रहीए जिससे आपकी अवज्ञा करनेकी हिम्मत कोई नहीं करेगा। लक्ष्मण खुद द्वारपाल बन जाते है।  वह ऋषी ओर श्रीराम अंदर चले जाते है।
दोनों अंदर जाने के बाद ऋषी अपना रूप बदलते हैं और अपने असली रूप में आजाते हैं। वह स्वयं यमराज होते हैं
वह कहते है, "प्रभु में परमपिता ब्रम्हा जी का संदेश लाया हूं,
उन्होंने कहा है की आपका पृथ्वी लोक पर का कार्य पूरा हो गया है , यदि आप कहे तो आपको इस लोक से स्वर्ग लोक केसे जाना चाहेंगे यह बताएं ।"
राम कहते है ,"यह सच एक महत्वपूर्ण बात है इसके बारेमे सोचना पड़ेगा ।"
उसी वक्त बाहर दुर्वासा ऋषि का आगमन होता है । वह राम को मिलना चाहते थे। लेकिन द्वार पल बना लक्ष्मण उन्हें रोक ता है और कहता है , "क्षमा करे ऋषी आप अंदर नहीं जा सकते, श्रीराम के आदेश है किसीको भी अंदर ना भेजा जाए।"
इस पर दूर दुर्वासा कुपित हो जाते हैं और कहते है ,"मेने तो सुनाथा राम बड़े साधु जनोका समान करते है , लेकिन यह मेरा अपमान है  । तुमने मुझे द्वार पर रोक कर अच्छा नहीं किया, तुम मुझे अन्दर जाने दोगे या में शाप दे कर यह अयोध्या नगरी नष्ट कर दुगा, इस नगरी के लोग भी राजा समान ही होगे शायद।"
इस पर लक्ष्मण सोचने लगते है ,अगर ये अंदर नहीं गए तो शाप देगे ओर अयोध्या नष्ट हो जाएगी, लेकिन अंदर जाने दिया तो राजा राम उन्हें प्रतिज्ञा के अनुसार उन्हें मृत्यु दंड देगे । इससे उन्हें ब्रम्ह हत्या का पाप लगेगा में ऐसा नहीं होने दुगा।
इस पर वह सोच विचार करते है ओर कहते हैं," ऋषिवर आप यही रुकिए में राम जी को संदेश दे के आता हूं।" ओर वह अंदर जाते है।

लक्ष्मण द्वारा शपत भंग 


उन्हें देख कर यमराज वहासे अद्रुक्ष हो जाते है। राम लक्ष्मण से कुपित हो के पूछते है ,तुमने ऐसा कीव किया। वह सारी बात बता देते हैं। फिर राम बाहर आकर दुर्वासा ऋषी का यथोचित स्वागत करते हैं। दुर्वासा ऋषी उन्हें बाताते हैं की उनके यहां जो
खाना बना है वह उन्हें खिलाए ,उन्हका व्रत था आज वह उसे छोड़ना चाहते है। राम उन्हें खाना खिलाते हैं । ओर दुर्वासा खुश हो कर अपने मार्ग पर चले जाते हैं ।

लक्ष्मण को शिक्षा 

फिर श्रीराम  सभा का आयोजन करते है । सभी दरबारी जमा होते हैं और सोचते है कि लक्ष्मण को केसे मृत्यु दण्ड दिया जाए। कोई उन्हें मृत्यु दण्ड देनेके लिए तयार नहीं होता । पर वचन का मान रखने के लिए ऐसा करना पड़ेगा य भी सब जानते थे। इस पर हनुमान आगे आकर एक प्रस्ताव रखते है
वह कहते है," शास्रों में लिखा है किसी क्षत्रियों को राजा की सेवा से कम करना ,सारे सम्बन्ध तोड़के ओर देश से निकाल देना उसके लिए मृत्यु दंड समान होता हैं। इसलिए आप इन्हे देश निकालने कि सजा दे।" इस पर सबकी समती बनती हैं।
ओर लक्ष्मण को देश निकला जाता हैं।
लक्ष्मण अयोध्या से निकालने के बाद शर्यू नदी के किनारे पर तप करने लगते है ओर बाद में वह सह देह ही स्वर्ग चले चते हैं।
इस तर हा उनका अवतार समाप्त होता हैं।

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