अभिमन्यु का चक्रव्युह भेदन | Mahabharat me Abhimnuvyu ka Chakraviv Bhedana


अभिमन्यु का चक्रव्युह  भेदन |  Mahabharat me Abhimnuvyu ka Chakraviv Bhedana 


युद्ध चालू हुये बारा दिन हो गए थे । कौरव और पांडव , दोनो ही सेनाकी अपरिमित हानि हो चुकी थी। ओर युद्ध के दसवें दिन महारथी ओर सबके वंदनीय भीष्म पितामह बाणों की  शया पर लेट कर युद्ध को त्याग दियाथा।

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द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्युह रचना 

भीष्म के गिरने के बाद यह धर्म युद्ध अब धर्म युद्ध नही रहथा। कोन क्या करेगा कह नही सकते थे।इस युद्ध को जल्दीसे जलदी खत्म करने के लिए कौरव सेनाके नए सेनापति द्रोणाचार्य ने अपना पूरा ध्यान युधिष्टर पेर केंद्रित करने की ठान ली थी। युधिष्ठिर को पकड़ने के बाद युद्ध तो वैसेही खत्म हो जाता। इसलिए उन्होंने युद्ध के तेरहवे दिन नया विव्ह रचा उसे चक्रव्युह  कहते थे। लेकिन उनके सामने एक समस्या थी, अर्जुन। अर्जुन चक्रव्युह को भेदना भली भांति जाणतात था। तो उन्होंने तय किया कि चक्रव्युह की रचना करने से पहले वह अर्जुन को युद्ध मे किसी दूर जगह ले जायेंगे और बाद में चक्रव्युह की रचना की जायेगी।
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तेरहवे दिन का युद्ध शुरू हुवा। युद्ध का नेतृत्व द्रोणाचार्य कर रहे थे। युद्ध के शुरुवात में ही अर्जुन पर जोरदार प्रहार होने लगे। लेकिन अर्जुन सब वारो का जवाब बड़ी कुशालतासे देता । कुछ रथी योने अर्जुन को युद्ध के लिए ललकार अर्जुन उनके पीछे पीछे चल दिये। जब वह निच्छित स्थान पर अर्जुन को ले गए , वह पे उनका ओर अर्जुन का घमासान युद्ध छिड़ गया। ओर उस युद्ध मे अर्जुन पूरी तरहसे अटक गए।


अभिमन्यु  का प्रस्ताव 

दूसरी ओर द्रोणाचार्य ने चक्रव्युह की रचना कर ली थी। चक्रव्युह को देखकर युधिष्ठिर औऱ पूरा पांडव खेमा सोच में पड़ गया अब क्या किया जाए।उनके पास इस के लिए कोई हल नाहीथा। तभी उनकी मदद के लिए एक बालक आया। वो था तो बालक पर उसकी तुलना अभी से अर्जुन और कृष्ण के साथ होने लगीथी, ऐसा उसका प्रताप था। वह बालक ओर कोई नही अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु था।
उसने युधिष्ठिर से कहा," है तात ,अगर आप मुझे आज्ञा दे तो में चक्रविव्ह भेद दुगा।"
तो युधिष्ठिर ने पूछा ,"पुत्र तुम कैसे जानतेहो चक्रविव्ह भेदना ?"
इस बात पर अभिमन्यु बोला,"जब में मेरी माता के गर्भ में था तब ,मेरे पिताजी माता को बाता रहे थे कि चक्रव्युह कैसे भेदते है,पर आधी बात सुनने के बात माता सो गई तो पिताजी ने बस चक्रविव्ह भेदन सिखाया ओर उससे वापस  कैसे आये यह नही बताया।"
यह सुनकर सब सोच में पड़ गए अब क्या किया जाए तब अभिमन्यु ने कहा मेरे होते हुए आपको चिंता करने की आवश्यकता नही है। में एक योद्धा हु ओर में युद्ध की ललकार से पीछे नही हट सकता। उसकी बात सुनकर सब राजी हो गए। फिर युधिष्ठिर ,भीम ,नकुल ,सहदेव अपनी सेनाके साथ उसके पीछे पीछे जाने के लिए तैयार हो गए । उन्होंने कहा तुम बस हमे अंदर तक पोहचाव ओर फिर हम पूरा चक्रविव्ह तहस नहस कर देंगे।

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जयद्रत द्वारा पांडवोंको रोकना 

अभिमन्यु सबको साथ ले कर  चक्रव्युह   के पहले द्वार  जा पोहचा उस  द्वार पर सिधुनरेश जयद्रथ था ।अभिमन्यु ने देखते देखते उसे परास्त कर दिया ओर चक्रव्युह के अंदर प्रवेश कर गया। लेकिन पांडव उसके साथ आगे नही बड़ सके जयद्रथ को महादेव का वरदान था कि अर्जुन छोड़ कर उसे कोई पांडव परास्त नही कर सकता। इस कारण कोई पांडव अंदर नही आ पाया।
यह देखकर सार्थीने अभिमन्यु से पूछा हमारे पीछे कोई नही , तब अभिमन्यु ने कहा ये सोचने का वक्त नही है,
तुम बस रथ को आगे बढ़ाथे रहो जैसे जैसे रथ आगे बढ़ता रहा वैसे वैसे रथी, महारथी आगे आते रहे ओर वह पराजित होते रहे, अति वेग से जाते हुए अभिमन्यु को कोई रोक नही पाया उसमे कर्ण, अश्वत्थामा, द्रोणाचार्य ,दुर्योधन सारे परास्त हो गए एक छोटे वीर के सामने। अभिमन्यु ने आखरी द्वार भी पार कर लिया ।ओर वह चक्र के बीचों बीच पोहच गया।


अभिमन्यु का कर्ण, अश्वत्थामा, द्रोणाचार्य ,दुर्योधन से लड़ना 

जब अभिमन्युचक्रव्युह  के बीचों बीच पोहचे तो वह असमंज में पड़ गया अब क्या किया जाये। लेकिन देर हो गए थी ।देखते ही देखते चारो ओरसे उसे घेर लिया गयाथा। कर्ण, अश्वत्थामा, द्रोणाचार्य ,दुर्योधन उस पर चारो ओर से वार कर रहे थे ।लेकिन वह सबको जवाब दे रहाथा। तब उसके सारथी ने कहा अगर आप कहे तो में वायुवेग से घोड़े दौड़ाकर जिस मार्ग से हम अंदर आये है उसी मार्गसे हम बाहर चले जायेंगे। तब अभिमन्यु ने कहा ,"में वीरगति स्वीकार करुगा पर इस तरह पीठ दिखाकर नही भागूँगा।" उसी वक्त करने गुरु द्रोण की आज्ञासे पीछे से बान मार के उसका धनुष तोड़ दिया फिर सारथी को मार रथ तोड़ डाला । फिर भी अभिमन्यु नही रुका उसने रथ से नीचे छलांग मार एक रथ का पया उठाया और चारो ओर से होने वाले आक्रमण को मुतोड़ जवाब देने लगा। आखिर वह पया भी टूट गया।

अभिमन्यु की वीरगति 

उस समय दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण गदा उठा कर उसकी ओर बढ़ा। अभिमन्यु ने भी गदा उठाईं दोनों एक दूसरे पे  झपट पड़े । अभिमन्यु ने अपनी वीरता सिद्ध करते हुए, लक्ष्मण को मार गिराया। इससे क्रोधित हो कर दुर्योधन ने अभिमन्यु को मारनेका आदेश दिया , जैसे शेर पर भिडियोक झुंड टूट पड़ाता है उसी प्रकार सब उसपर टूट पडे, अभिमन्यु पूरी तरह घायल हो गयाथा पर वह हार नही मान रहाथा । दुःशासन का पुत्र अभिमन्यु के साथ युद्ध करने लगा ,ओर दोनो मूर्छित हो कर गिर पड़े। दुःशासन का पुत्र पहले उठा ओर उसने खुद को संभालते हुए मूर्छित अभिमन्यु पर गदासे वार किया, ओर एक शूरवीर  वीर गति को प्राप्त हो गया।

अभिमन्यु के मृत्यु से पांडव शिविर निराश हो गयाथा। पर उसकी विरता पे सभी को नाज था। लेकिन जिस प्रकार उसे मार गया उसका समर्थन ना द्रोण कर सके न कर्ण कर सका ।अभिमन्यु की मृत्यु उनकी कीर्ति के लिए एक दाग़ बन गया। और अभिमन्यु इतिहास में अमर हो गया।


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