कैसे हुवा भगवान दत्तात्रेय का जन्म ? क्यु ली गई माता अनुसुया की परीक्षा ?|kese huva bhagvan dattatreya ka janm ? Kiv li ge mata anusuya ki pariksha?(hindu mythology)
कैसे हुवा भगवान दत्तात्रेय का जन्म ? क्यु ली गई माता अनुसुया की परीक्षा ?|kese huva bhagvan dattatreya ka janm ? Kiv li ge mata anusuya ki pariksha?(hindu mythology)
महर्षी अत्रे सप्त ऋषियोमेसे एक माने जाते हैं। उनके पत्नीका नाम अनुसुया था।
यह बात तबकी है जब महर्षी अत्रे और माता अनुसुया ब्रम्हा विष्णु और महेश जैसा गुणवान पुत्र पाना चाहते थे। इसके लिए दोनोंही कड़ा तप करने लगे थे।
देवी लक्ष्मीकी इर्षा |Devi lakshmi ki irsha
एक दिन नारद मुनी माता अनुसूया और महर्षि अत्रे के दर्शन कर सीधे वैकुंठ लोक भगवान विष्णु के दर्शन करने गए। लेकिन उन्हें वाह पर भगवान विष्णु नही मिले। पर उन्हें माता लक्ष्मीके दर्शन हुए। उन्होंने देवी लक्ष्मीको प्रणाम किया।
देवी लक्ष्मीने प्रणाम का उत्तर देते हुए कहा," प्रणाम नारद मुनी , आज आप बड़े खुश लग रहे है।"
नारद मुनि ने अपने चिरपरिचित लेहजे में कहा," जी देवी बात ही ऐसी खुशी की हुई है, नारायण ,नारायण।"
" हमे भी तो बताइए ऐसी कौनसी बात है कि आप फूले नहीं समारहे।"
शायद नारदजी इसी प्रश्न का इंतजार कर रहे थे,"आज मेने माता अनुसुया के दर्शन किये। में तो धन्य हो गया।"
"शायद आपको पता नही देवी वह सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता है। उन्हें अपने सतित्वसे जो तेज प्राप्त हुवा है। वैसा तेज मेने तीनो लोकोमे कही नही देखा।"
खुदको सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता समजने वाली देवी लक्ष्मीको नारद मुनि की यह बात रास नही आयी। उन्होंने नारद मुनिसे पूछ लिया ," क्या वह मुजसे भी श्रेष्ठ पतिव्रता है।"
नारद मुनि ने बड़ी चलाकिसे कहा," आप भी महान पतिव्रता है ,लेकिन सब कहते हैं, माता अनुसुया सबसे श्रेष्ठ है। और यह भी की देवी सरस्वती और देवी पार्वती से भी श्रेष्ठ है।"
देवी लक्ष्मी को अपनी तुलना देवी सरस्वती और देवी पार्वती से करने से सुख दे गई पर एक सामान्य स्री उनसे किसी बात में श्रेष्ठ हो सकती है। यह बात उन्हें रास नही आरही थी।
इस पर देवी ने कहा ," अच्छा हुवा मुनिवर आपने बता दिया अब में भी देखना चाहुगी की अनुसुया कितनी महान हैं।"
नारद मुनिने मुसकुराते हुए कहा ," जैसी आपकी मर्जी.. अब मुजे जाने की आज्ञा दीजिये । नारायण ,नारायण..।"
और वह आते हुए जितने खुश थे उससे ज्यादा जाते हुये खुश थे। जैसे कि उन्होंने कुछ महान कार्य किया हो, या शायद भविष्य को सोच कर खुश हो रहे थे।
लेकिन एक बात तो उन्होंने जरूर की थी। देवी लक्ष्मीके मन मे इर्षा का बीज बोयाथा।
माता अनुसुया की परीक्षा लेने का आग्रह | mata anusuya ki pariksha lene ka aagrah
देवी लक्ष्मी ने इस बात पर बड़ा सोचा। वह फिर भगवान विष्णु से मिली लेकिन उन्हें भी उनसे ऐसा कोई उत्तर नही मिला जो वह सुनना चाहती थी। उन्हें लगा भगवान विष्णु सीधी तरहसे कुछ नही बताए गे, कोन श्रेष्ठ है इस बात की परीक्षा होनी ही चाहिए। इसलिए देवी लक्ष्मी देवी सरस्वती और देवी पार्वती से मिली। और उन्हें सब बाते बताई । देवी पार्वती को देवी लक्ष्मी की बात सही लगी, क्योकी उन्होने बोहत कड़ी तपस्या कर भगवान शिव को पाया था। और उन्हसे भी श्रेष्ठ कोई पतिव्रता हो सकती है , इस पर उनका विश्वास नही था। देवी सरस्वती भी उनके साथ हो ली।
अब तीनों दैवीया त्रिदेवो से माता अनुसुया की परीक्षा लेनेके लिए कहने लगी। पहले तो उन्होंने सुना नही पर उन्ह का हट देख तीनो देव, ब्रम्हा विष्णु औऱ महेश परीक्षा लेने के लिए राजी हो गए।
माता अनुसुया की परीक्षा| mata manushya ki pariksha
ब्रम्हा विष्णु औऱ महेश तीनो ने ऋषि का वेश धारण किया। उन्होंने ऐसा वक्त चुना जब महर्षि अत्रे बाहर गए थे और भिक्षा मांगने महर्षि अत्रे के घर गए।
" भिक्षां देहि, भिक्षां देहि" तीनो साधु घरके बाहर से चिल्लाते है।
तीनो साधुओं की आवाज सुन माता अनुसूया बाहर आती हैं। साधुओं को प्रणाम कर कहती है," है ऋषि गण आप बिलकुल उचित समय पर आए है। मैंने अभी भोजन तयार किया है। क्रुपया हमारी कुटिया में पधार कर मुजे सेवा का अवसर दे।"
तिन्हों ऋषि कुटियामे जाते है। माता अनुसुया उन्हें बैठने के लिए आसन देती है। तिन्हों ऋषि उसपर बैठ जाते है।
माता अनुसुया उन्हें खाना परोसने लगती है।
तब उन्हमेसे एक ऋषि कहते है ,"रुको...।"
" क्या हुवा ऋषिवर ,कुछ गलती हो गई क्या?"
"नही, लेकिन हमने तुम्हे हमारी शर्त नही बताई।"
"केसी शर्त ऋषिवर?"
" हम सिर्फ तभी अन्न ग्रहण करेंगे, जब तुम तुम्हारे पूरे नैसर्गिक रूप में होगी और हमे अन्न दोगी।"
यह बात सुन माता अनुसुया हड़बड़ा गई। नैसर्गिक रूप मतलब वस्रहिन अवस्था में ... ये कैसे संभव है। में यह नही कर सकती पति के सिवा किसी ओर के सामने असंभव है।
फिर वह ऋषियोंकि ओर देखती है। जो अन्न ग्रहण करने के लिए बैठे है। अगर मेने नही कहा तो वह बिना अन्न ग्रहण किये चले जाएगे। ऋषियोंको बिना अन्न ग्रहण कर उठाना कितना बड़ा पाप होगा। यह कैसा धर्म संकट मेरे सामने आ पड़ा है। लेकिन वह कुछ सोच कर निच्छिन्त हो जाती है।
माता की चतुराई |mata ki chaturae
वह ऋषियोंके पास जाकर बोलतीहै ," हे ऋषिवर आपके कहे अनुसार ही में आपको अन्न दान करूंगी।"
फिर माता अनुसुया अपने हतेलीमे पानी लेती है औऱ कहती है ," अगर मेने अपनी पति के सिवा किसी ओर पुरुष का विचार भी नही किया हो तो, यह तीनो ऋषि अबोध बालक में बदल जाये।" और वह पानी उनपर डाल देती है।
देखते ही देखते तीनो ऋषि छोटे तीन चार माह के अबोध बालक में बदल जाते है।
फिर माता अनुसुया अपने वस्र उतारकर रख देती हैं। उन्ह छोटे छोटे मासूम और अबोध बालक को देख उनकी ममता जाग जाती है। वह खेलते हुए बालको मेसे एक एक को उठाकर स्तनपान कराती है। फिर अपने काम को लग जाती है। तीनों बालक घर मे इधर उधर घूम कर मस्ती करने लगते हैं। फिर वह एक झूला बनाकर तिन्हों को उनमे रख अपना काम करने लगती है। कुछ समय बाद महर्षी अत्रे आते हैं। वह तीनों बालकोंको देख ते है ओर अपनी दिव्य शक्तियोंसे पता लगा ले ते है क्या हुवा है।
देवियो का गर्व हरण | deviyo ka garv haran
इधर तीनों देवीया अपने पतियोकि राह देख रही होती है। लेकिन बोहत समय बितनेके बाद भी वह क्यो नही आये। यह देखने के लिए महर्षी अत्रे के आश्रम में जाने लगती हैं। तभी रास्ते मे उन्हें नारद मुनि मिलते है। जब नारद मुनि से वह सारी कहानी सुनते है, तब उनका श्रेष्ठ होने का घमंड चूर चूर हो जाता हैं । अब किस तरह माता अनुसुया से अपने पति यो को वापिस ले इस सोच में पड़ जाती हैं।
भगवान दत्तात्रेय के जन्म का वरदान |bhagavan dattatreya ke janm ka vardan
फिर वह महर्षी अत्रे के आश्रम पोहचती है। वहां जाकर वह माता अनुसुया से मिलती हैं। तब माता अनुसुया उनसे पूछती है ," कोन हो तुम्ह तीनो?"
तब तिन्हों देवीया बोलती है ," माता हम आपकी बहुये है और हम हमारे पतियों को लेने आये है।"
"बहुये..." माता अनुसुया उनकी बात सुन कर सब समज जाती है।
फिर वह तीनो बालको को फिर से बड़ा बना देती है। बालक बड़े होने पर अपने असली रूप ब्रम्हा विष्णु महेश में आजाते हैं।
माता अनुसुया को कहते है," हमने आपकी परीक्षा ली और आप उसमे सफल हुई है। आपने हमे पुत्र रूप में पाने की कामना की थी और हम भी आपके साथ कुछ समय के लिए सही पुत्र की तरह रहे है। इसलिये माता आपकी इच्छा अनुसार हम आपके पुत्र रूप में जन्म लेगे और आपकी इच्छा पूरी करेंगे।"
यह कहमर वह अन्तर्धाम हो जाते है।
कुछ समय बाद महर्षी अत्रे और माता अनुसुया के यहा पुत्र का जन्म होता है जिसे तीन मुख और छह हात होते है। उसमे ब्रम्ह विष्णु और महेश ऐसे तीनों के अंश होते है । आगे चलके वही बालक भगवान दत्तात्रेय के नाम से जाना जाता हैं।
Note
अबोध- जिसे किसी भी बात का ज्ञान / बोध नही होता ।
कुछ कहानीयो में यह भी कहा गया है कि चंद्र देव ब्रम्हा के , भगवान दत्तात्रेय विष्णु के ओर दुर्वासा ऋषि महेश के अवतार है। यह तीनों महर्षी अत्रे और माता अनुसुया के पुत्र है।
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