क्यो दिया देवी कालीने शिव के शरीर पर पेैर ? | kyo diya devi kaline shiv ke sharir par per ( Hindu mythology)
क्यो दिया देवी कालीने शिव के शरीर पर पेैर ?
दैत्य रक्तबीज (यह नाम उसे वरदान के कारण मिलता था जो हम आगे पढेंगे ) ने कठोर तप का प्रारंभ किया था । वह ब्रम्हा को प्रसन्न कर मन चाहा वरदान पाना चाहता था। उसके कठोर तप के कारण देवताओमे भय फैहल गया था। उन्होंने उसका तपोभंग करने के अनेक प्रयास किये पर वह सफल नही हो पाए। उसकी तपस्या देख परमपिता ब्रम्हा उसपर प्रसन्न थे। फिर परमपिता ब्रम्हा ने उसे दर्शन दे कर मन चाहा वरदान मांगने के लिए कहा।makali by raja ravi varma |
ब्रम्हा द्वारा रक्तबीज को वरदान | bramha dvara raktabij ko vardan
उसने ब्रम्हा से कहा," हे परमपिता मुझे अमर होने का वरदान दीजिए।"इसपर परमपिता ब्रम्हा ने कहा ," जिस प्राणीने जन्म लिया है, उसका मरना अटल है। यही विधिका विधान है। में तुम्हे यह वरदान नही दे सकता तुम्ह कुछ ओर मांगो। में अवश्य तुम्हे दूँगा।"
यह बात सुनकर रक्तबीज थोड़ा सोच में पड़ गया। उंसने फिर सोचकर कहा," तो आप मुझे ऐसा वर दीजिये ,जब भी कभी मेरे रक्त की एक भी बून्द धरती पर गिरेगी तब उसमेंसे अनेक मेरे तरह राक्षस निकलेगे।"
ब्रम्ह देव उसकी चतुराई देख कर खुश हुए और बोले ,"तथास्तु।"
इस वरदान के कारण उसका नाम रक्तबीज पड गया।
रक्तबीज का पृथ्वी पर विजय | rakatbij ka pruthavi par vijay
रक्तबीज ने पहले तो पृथ्वी पर आक्रमण किया और सारे राजा महाराजा ओको परास्त कर धरती पर अपना वर्चस्व कायम किया। अब उसका अन्याय दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा था। ऋषि मुनियों के यज्ञ में बाधा डालना, मासूम लोगोको मारण,स्री हरण करना । यह उसके नित्य के कार्य हो गए थे। एक दिन उसने सोचा अब धरती पर क्या रखा है? में सबसे शक्तिशाली हु , मुझे अब स्वर्ग पर आक्रमण करना चाहिए और स्वर्गाधिपति होना चाहिए। अपने कार्य को पूरा करने के लिए उंसने अपनी सेना एकत्र की और स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया।क्यो किया भगवान परशुराम ने अपनी माता रेणुका का वध?| kiv kiya bhagvan parshuram ne apni mata renukaka vadh
देव दानव युद्ध | dev danav yuddh
स्वर्ग में सभी देवतागण उसके आक्रमण के लिए तैयार थे ।उन्हें अपनी शक्ती पे पूरा भरोसा था। और उपर से वह अमर भी थे। उन्होंने अपनी विजय को निच्छित मान लियाथा । अपनी शक्ति के गर्व में उन्होंने रक्तबीज को कम समझा।
रक्तबीज के स्वर्ग पर आक्रमण करने पर देवता भी अपनी पूरी शक्ति से उसपर टूट पड़े। घमासान युद्ध शुरू हो गया । देवताओंके आगे राक्षस सेना का टिकना असंभव दिख रहाथा। राक्षस सेना कम हो रहीथी ओर देवताओंको अपना विजय दिखने लगा था। लेकिन जब पहली बार रक्तबीज घायल हुवा ओर उसका खून जैसे ही जमीन पे गिरा उसके खून से अनेक रक्तबीज निकले ओर उनके खून से ओर रक्तबीज निकले । जो देवता विजय की ओर अग्रेसर थे ,वो अब पराजय की ओर झुकने लगे थे। समय जैसे जैसे बीतता गया वैसे वैसे देवताओंकी शक्ति शीन होती गई ओर रक्तबीज ताकतवर होता गया। अब देवता समज चुके थे ,अमर होना अलग है और विजयी होना अलग है। इसलिए कैद होनेसे अच्छा पराजय स्वीकार कर वहासे निकल जाना उन्होंने बेहतर समजा, और वह युद्ध क्षेत्र छोड़कर निकल आये।
अब तीनो लोकोपे रक्तबीज का राज्य हो गया था।
देवतावो ने अनेक प्रयास किये की स्वर्ग फिर से हासिल किया जाए। लेकिन उनका रक्तबीज के सामने कोई मुकाबला नही था। इसलिए उन्हें बस पराजय का मुह देखना पड़ता।
अभिमन्यु का चक्रव्युह भेदन | Mahabharat me Abhimnuvyu ka Chakraviv Bhedana
महाकाली द्वारा देवताओंकी मदत | mahakali dvara devtaoki madat
देवतागण सोच विचार कर परमपिता ब्रम्हा के पास गए। और उनसे मदत मांगी। इस पर परमपिता ने उनकी मदत करने में असमर्थता दर्शाई ओर उन्हें सलाह दी कि वह कैलास जाकर महादेव ओर माता आदिशक्ति से मदत मांगे। सभी देवतागनोने कैलास जाकर माता पार्वती और महादेव से मदत मांगी। देवताओंकी यह हालत देख माता आदिशक्ति उनकी मदत करने के लिये तैयार हो गई।महाकाली और रक्तबीज युद्ध | mahakali or raktabij yuddh
माता पार्वती ने रक्तबीज को युद्ध के लिये ललकारा । देख ते ही देखते भयंकर युद्ध आरंभ हुवा। माता पार्वती की शक्ति के सामने किसी रक्तबीज का कोई मुकाबला न था। लेकिन जभी उसका खून जमीन पे गिरत तो उससे अनेक रक्तबीज तैयार हो जाते। इस कारण माता कि विजय निकट होते हुए भी दूर दिख रही थी। माता पार्वती को गुस्सा आने लगा था। और बढ़ते हुए रक्तबीज राक्षोसो के साथ उनका गुस्सा ओर बढ़ने लगा । उनका रूप अब बदलने लगा था। उनका रंग काला हो रहाथा ओर उनकी भुजाये बढ़ रहीथी । इसके साथ ही बढ़ते राक्षसों के कारण उनका गुस्सा ओर बढा ओर उन्होंने अपना सबसे रौद्र रूप धारण किया जिसे महाकाली कहा जाता था। उनके एक हात में खप्पर ,एक हात में तलवार , गलेमें नर मुंडोकी माला । देविका यह रूप देख देवता डर कर शिवजी के पास भाग गए।अब देवी अपने क्रोध में रक्तबीजो का वध करने लगी। लेकिन इस बार वह उनका सारा गिरता हुवा रक्त खप्पर में एकत्रित करती और उसे पी जाती। और जो रक्त दूसरी तरफ गिरता उसे अपनी जीवा फैलाकर पी लेती। इस तरह देवी ने एक भी रक्त की बूंद नीचे नही गिरने दी और सारा रक्त पी गई। इसके साथ ही रक्तबीज का अंत हो गया। लेकिन अब देवी का गुस्सा देवी के काबू में नही रहाथा। ओर वह जो सामने आता उसे नष्ट कर आगे की ओर बढ़ती रहती।
महाकाली का शिवजी के शरीर पर पैर रखना | mahakaline shivjike sharir par per rakah
देविका यह रूप देखकर सबने शिवजी से प्रार्थना की, की वह माता को समझा कर उनका क्रोध शांत करे। महादेव महाकाली को समझाने का बोहत प्रयास करते है। पर महाकाली अपने क्रोध में कोई भी बात नही सुनती।सामने आने वाला हर प्राणी पशु उनके क्रोध के सामने नष्ट हो जाता। उनका ऐसा रूप देख सब भयभीत हो कर छुप जाते हैं। अब कोई रास्ता न देख महादेव देवी के आगे लेट जाते है। फिर भी महाकाली आगे बढती रहती है। और एक समय ऐसा आता है कि वह महादेव पर पैर रख देती हैं। पैरो के नीचे क्या आया यह देखने के लिये वह नीचे देखती है। अपने पैरो के नीचे शिवजी को देख वह चौक जाती है ओर उनका गुस्सा शांत हो जाता हैं। गुस्सा शांत होने के बाद वह अपने रूप में वापिस आ जाती है।इस प्रकार काली ने महादेव के शरीर पर पैर रखा था। बाद में इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने घोर तपस्या की थी ।
Note
कुछ कहानिया माता पार्वती ओर महाकाली को अलग अलग मानते है। तो कुछ कहानियों में उन्हें एक ही बताया गया है।सबसे पहले कहानी पढ़ने के लिए मेरे टेलीग्राम चैनल को join करे
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