क्यो मिला कर्ण को कवच ? और कौन थे नर - नारायण?| kyo mila karn ko kavach ? or kon the nar narayan? (hindu mythology)

क्यो मिला कर्ण को कवच ? और कौन थे नर - नारायण?kyo mila karn ko kavach ? or kon the nar narayan? (hindu mythology)


दंबोधक को सूर्य देव का वरदान। dambodhak ko sury dev ka vardan

दंबोधक नाम के राक्षस ने सूर्य की तपस्या करते हुये हजार साल व्यतीत किये। उसकी हजार साल की कड़ी तपस्या देख सूर्य देव को स्वयं उसे वरदान देने के लिये आना पड़ा।
सूर्य देव ने कहा ,"दंबोधक में तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हु। बोलो तुम्हे क्या वरदान चाहिए।"
दंबोधक सूर्य देव की बात सुन कर बोहत खुश हुवा," उंसने सूर्य देव से कहा मुझे एक हजार कवच चाहिए जो मेरी रक्षा करे, उन्हें तोड़ने की ताकत बस उन्ही लोगोंमें होगी जिन्होने एक हजार साल तप किया हो लेकिन कवच टूटने के बाद ,कवच तोड़ने वालेकी मृत्यु हो जाएगी।"
सूर्य देव दंबोधक की बाते सुन चकित रह गये। दंबोधक ने जैसे अमर होने का ही वरदान मांग है ऐसा उन्हें लगने लगा। लेकिन वह तपस्या का फल देने के लिए बाध्य थे। उन्होंने दंबोधक को उसकी इच्छा नुसार वरदान देते हुए कहा ,"तथास्तु !"

दंबोधक को वरदान का अहंकार | dambodhak ko vardan ka ahankar

दंबोधक वरदान पाकर बोहत खुश हो गया और अपनी शक्ति के उन्माद में लोगोके ऊपर अत्याचार करने लगा। उसके अत्याचार से लोग डरकर रहने लगे। उससे जो भी लड़ता  वह पराजित हो जाता । एक हजार साल तपस्या करने वाले तो सिर्फ ऋषि मुनि थे । उनमेंसे कोई मृत्यू के  भय , तो कोई इस सांसारिक जीवन से कोई मोह नही है इसलिए दंबोधक से नही लड़ते थे। जैसे जैसे लोग डरते गए , वैसे वैसे उसके अत्याचार बढ़ने लगे । अब जैसे लोगोको उंसने अपना गुलाम बनाके रखा था।

नर नारायण का जन्म | nar narayan ka janm

उसी काल मे परमपिता ब्रम्हा के पुत्र धर्म के साथ प्रजापति दक्ष  की पुत्री रुचि का विवाह हुवा। रुचि भगवान विष्णु की बोहत बड़ी भक्त थी। वह हमेशा भगवान विष्णु की पूजा में लीन रहती और कामना करती की उन्हें भी भगवान विष्णु जैसा पुत्र प्राप्त हो। भगवान विष्णु ने उनकी मनोकामना पूरी करते हुए । उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया। लेकिन भगवान विष्णु का यह अवतार अलग था। उन्होंने जुड़ाव बालक के रूप में जन्म लियाथा। उनके शरीर तो दो थे पर उन बालकोकि आत्मा एक थी। उन्ह दोनोका नाम नर और नारायण रखा गया।


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नर नारायण और दंबोधक का युद्ध | nar narayan or dambodhak yudh

जब नर नारायण थोड़े बड़े हुए तो वह अपनी माता पिता की आज्ञा पाकर जंगल में तपस्या करने चले गए। वह महादेव के बोहत बड़े भक्त थे। उन्होंने बद्रीवन* ( please read note)  जाकर तपस्या को आरंभ किया। वह आसपास के गावो में जब जाते तब वहाँपर दंबोधक के जुल्मो की कहानी सुनते और वह इस बारेमे वह कुछ करने का सोचते। एक दिन उन्हें ज्ञात हो ही गया कि दबोधक का अंत कैसे करना है और यही उनके जीवन का कार्य है।

नर नारायण की तपस्या | nar narayan ki tapasya 

नारायण वन तपस्या करने लगा और नर ने दंबोधक को जाकर लड़ने के चुनोती दी । उसकी चुनोती सुन दंबोधक हसने लगा।
उंसने कहा," तुम्हे शायद मेरे वरदान के बारेमे पता नही, क्यो अपनी जिंदगी दाव पे लगा रहे हो। क्या तुम्हे तुम्हारे जीवन से मोह नही है।"
इसपर नर ने कहा, " युद्घ करो मुजसे फिर तुम्हे पता चल ही जायेगा किसे जीवन से मोह है और किसे नही।"
नर की यह ललकार सुन दंबोधक युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। दोनो में घमासान युद्ध शुरू हो गया।
दूसरी ओर नारायण तपस्या करने में लीन हो गया।
दंबोधक औऱ नर का युद्ध हजार साल तक ऐसा ही चलता रहा। इधर नारायण के तपस्या के भी हजार साल पूरे हो गए। नारायण के तपस्या के हजार साल पूरे होते ही नर ने दंबोधक का एक कवच तोड़ दिया। कवच तोड़ते है। नर का शरीर प्राण हीन हो कर जमीन पे गिर गया। लेकिन तभी वहा पर नारायण आ गया। एक जैसा बालक देख कर दंबोधक चकित रह गया। नारायण ने आकर नर के कान में कुछ कहा और नर जीवित हो गया।

nar narayn
nar narayan



जीवित नर को देख दंबोधक बोला,"असम्भव!! ये हो नही सकता । यह तुम्ह क्या छल कर रहे हो।"
तब नारायण ने कहा ,"हम दोनों शरीर से अलग है पर आत्मा से एक है। इसलिए मैंने एक हजार साल तपस्या की ओर नर ने तुम्हारा कवच तोड़ दिया। लेकिन मेने तपस्या करने के बाद महामृत्युंजय मंत्र प्राप्त किया जिसके प्रभाव के कारण में नर को जीवित कर पाया।"
यह सुन कर दंबोधक बोला ,"इससे कोई फर्क नही पड़ता। मेरे पास अभी भी 999 कवच बाकी है।"
तो नारायण ने कहा," इसके बारे में भी हमने सोच रखा है।"

अब नारायण दंबोधक से युद्ध करने लगा और नर वन में जाकर तपस्या करने लगा। जब नर ने एक हजार साल तपस्या पूरी की तो नारायण ने एक और कवच तोड़ दिया। नारायण भी प्राण हीन हो गया पर नर ने उसे फिर से जीवित कर दिया। यह चक्र चलता ही रहा। कवच टूटना, नर नारायण का मरना , फिरसे जीवित होना, तपस्या और फिर कवच टूटना। इस प्रकार दंबोधक के 999 कवच टूट गए।

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सूर्य देव द्वारा दंबोधक की मदत| sury dev ki dambodhk ko madat

उसके पास अब आखरी कवच बचा था। दंबोधक को अपनी मृत्यु नजदीक दिखाने लगी थी। वह मृत्यु के भय से कापने लगा और युद्व भूमि छोड़कर सूर्य देव की शरण मे चला गया।
सूर्य देव ने अपने भक्त को बचाने के लिए उसे अपने शरण मे जग दी। जब नर नारायण सूर्य देव के पास जा पहुचे और दंबोधक को उनके हवाले करने के लिए कहा। लेकिन सूर्य देव ने ऐसा करनेसे साफ इनकार कर दिया और कहा," ये मेरे शरण मे आया है। में इसे किसी भी स्थिति में तुम्हारे हवाले नही करूंगा।"
" लेकिन यह एक पापी है । इसकी मृत्यु निच्छित है।"
"अब यह संभव नही है। में इसकी रक्षा करुगा।"
यह बात सुन नर और नारायन क्रोधित हो गए औऱ उन्होंने शाप दिया कि," इस जन्म हम इसे इसके पाप का दंड नही दे सके पर अगले जन्म में हम इसे पाप का दंड जरूर देगे। और आप सूर्य देव आपने इस पापी का साथ देकर उसके पाप के भागी बन गए है। इसलिए आपको भी इसका फल भोगना पड़ेगा और आपभी इसके साथ मनुष्य रूप में जन्म लेगे।"
यह शाप देकर दोनो चले गए।

कर्ण को मिला कवच | karn ko mila kavach

आगे जाकर द्वापरयुग में जब कृष्ण और अर्जुन के रूप में नर नारायण ने अवतार लिया । उसीके विपरीत दंबोधक और सूर्य देव ने एक ही शरीर मे जन्म लिया ,कर्ण के रूप में। इसी कारण कर्ण को कवच मिलाथा। और उसके अंदर सब सूर्य देव के अच्छे गुण होते हुए भी दंबोधक के प्रभाव के कारण वह उंसने गलत लोगो का साथ दिया औऱ अर्जुन के हाथों मारा गया।

Note
 बद्रीवन में आज बद्रीकाश्रम बना है।वही पास नर और नारायण नामक दो पहाड़ है।  केदारनाथ के पवित्र शिवलिंग को नर और नारायण ने मिलकर स्थापित किया है।

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