कैसे हुवा महामृत्युंजय मंत्र का निमार्ण और कैसे बने ऋषि मार्केंडेय पहले चिरंजीवी ?| kese huva mahmrutunjay mantra ka nirman or kese bane rushi markendiy pahale chiranjivi? (hindu mythology)

कैसे हुवा महामृत्युंजय मंत्र का निमार्ण और कैसे बने ऋषि मार्केंडेय पहले चिरंजीवी ? kese huva mahmrutunjay mantra ka nirman or kese bane rushi markendiy pahale chiranjivi? (hindu mythology)

कैसे हुवा भगवान दत्तात्रेय का जन्म ? क्यु ली गई माता अनुसुया की परीक्षा ?|kese huva bhagvan dattatreya ka janm ? Kiv li ge mata anusuya ki pariksha?(hindu mythology)

महादेव का मृकुण्ड ऋषि को वरदान । Mahadev ka mrukund rushi ko vardan

मृकुण्ड ऋषि एक बडे ही तेजस्वी ऋषि थे । वह सर्व ज्ञान सम्पन थे। बस उनके जीवन की एक ही व्यथा थी। शादीके इतने सालो के बाद भी उन्हें कोई पुत्र नही था।
मृकुण्ड ऋषि ने और उनकी पत्नी ने महादेव की तपस्या करना शूरी किया । जिससे महादेव प्रसन्न होंगे और उन्हें पुत्र प्राप्ती का वरदान देगे। उनकी यह तपस्या अनेक वर्ष अखंड चली । आखिर कार महादेव उन्हें प्रसन्न हुए । महादेव ने उन्हें दर्शन देके कहा, " ऋषिवर में आपकी तपस्या से प्रसन्न हूँ। आप अपना मन चाहा वरदान मांग सकते हैं।"
मृकुण्ड ऋषिने कहा," प्रभु मुजे कोई वरदान नही चाहिये, मुझे सिर्फ आप पुत्र प्राप्तीक आशीर्वाद दीजिये।"
इसपर महादेव ने कहा ,"तुम्हे जो चाहिए वह जरूर मिलेगा ,लेकिन तुम्हे कैसा पुत्र चाहिए ? दुर्घायुवाला मंदबुद्धि या सोला वर्ष की आयुवाला महाज्ञानी?"
"हे प्रभु ये मेरी कैसी परीक्षा है? में कैसे अपने पुत्र का ऐसा भाग्य चुनु जिसमें वह मंदबुद्धि या अल्पायु हो?"
" मृकुण्ड, तुम्हारे भाग्य में पुत्र नही था? लेकिन तुम्हणे मेरी तपस्या कर अपना भाग्य बदला है। में तुम्हे इसका उचित फल देना चाहता हु। इसलिए मेने तुम्हे चुनाव का मौका दिया है।  में तो बस पुत्र प्राप्ति का वरदान देता, पर तुम्ह उसका भाग्य नही बदल पाते लेकिन अभी तुम्ह यह कर सकते हो।"
ये कैसी दुविधा है? कैसे अपने पुत्र का भाग्यचुने जिसमे मुझे सिर्फ अंधेरा दिख रहा है । दीर्घायु या महाज्ञानी ? मंदबुद्धि होने की वजहसे उसकी लंबी उम्र उसे किस काम नही आएगी। लेकिन ज्ञान प्राप्ति के कारण शायद उसे आगे कुछ मार्ग मिले शायद वह अपने कार्य के कारण अमर हो जाये!
"प्रभु मुझे महाज्ञानी पुत्र होने का आशीर्वाद दीजिए।"
कुछ समय बाद मृकुण्ड ऋषि के घर पुत्र हुवा उसका नाम मार्केंडेय रखा गया ।



markendey save by lord shiva
markendey and mahadev by raja ravi varma

मार्केंडेय का वन में जाना | markaendey ka van jana

मार्केंडेय बड़े ही होशियार थे। वह छोटी आयुसे ही वह सब  ज्ञान ग्रहण कर लेते जो कोई सामान्य बुद्धि का कभी समज भी नही पाता। उन्हेंने अपनी आयु आठ साल की होने तक अपने पिता से सारा ज्ञान हासिल कर लिया औऱ वह स्वयं भगवान की तपस्या कर ज्ञान अर्जित करने लगे। ऐसे ही ओर सात साल बीत गये। पंधरा वर्ष की आयु के होने के बाद ऋषि मृकुण्ड और उनकी पत्नी दुःखी रहने लगे। यह बाद मार्केंडेय से छुपी नही , उन्होंने अपने माता पिता से उसका कारण पूछा लेकिन उन्होंने नही बताया। उन्होंने जब बोहत जोर दिया तब उनके पिताने महादेव के वरदान के बारेमे बताया । यह सुनकर मार्केंडेय विचलित नही हुये। उन्होंने अपने माता पिता को समजाया दुःख ना करे, और उन्हें महादेव की तपस्या करने के लिए  वन में जाने की अनुमति दे। अपने माता पिताकी अनुमती पाकर वह वन चले गये।


क्यो किया भगवान परशुराम ने अपनी माता रेणुका का वध?| kiv kiya bhagvan parshuram ne apni mata renukaka vadh

मार्केंडेय द्वारा शिव की पूजा | markendey dvara shiv ki puja

वन जाकर उन्होंने वहापे एक शिव मंदिर की स्थापना की और वहा पर रोज महादेव की पूजा करने लगे। देखते देखते वह दिन आगया जब वह सोला सालके होने वालेथे। उस दिन वह सुबहसे शिवमंदिर में बैठे महादेव की पूज्या करने लगे।
उन्हें लेने के लिए यमदूत आये लेकिन मार्केंडेय के पूजा से जो तेज उत्तपन्न हुवा उसके कारण वह शिवमंदिर में प्रवेश नही कर पाएं। उन्होंने बोहत प्रयास किया लेकिन वह सफल नही हो पा रहेथे। आखिर वह हार कर यमपूरी लोट गए ।

यमराज का क्रोध | yamraj ka krodh

यमराज ने उन्हें खाली हात आते देख गुस्सेमें कहा ,"कहा है वह जीवात्मा जिसे तुम्ह लेने गये थे?"
उन्हका क्रोद्ध देख यमदूत घबराते हुए बोले," शमा करे महाराज हम जीवात्मा लाने गए थे। पर वह एक परम तेजस्वी जीवात्मा है। उसके तेज के कारण हम उन्हके पास नही पोहच पाए।"
"असंभ , एक सोला वर्ष का बालक इतना तेजस्वी । यह हो ही नही सकता। में खुद जाके उसकी आत्मा लेके आता हूं।"
यमराज अतिक्रोध में निकल पड़े , एक बालक की आत्मा लाने।

महामृत्युंजय मंत्र का निर्माण | mahamrutunjay mantra ka nirman

जब यमराज शिवमंदिर के पास पोहचे तो उन्हें भी बालक का तेज देख आश्यर्य हुवा। वह धरती पर उतरे तब मार्केंडेय की नजर उन्ह पर पड़ी। एक विशाल काय भैसे पर बैठे एक हात में यमपाश एक हात में गदा और आँखों में क्रोध की ज्याला और उसके साथ उनका श्याम वर्ण देख, अपने ओर बढ़ते यमराज को देख बालक मार्केंडेय डर गया। उंसने डरके कारण शिवलिंग को अपने दोनों बाहों में पकड़ लिया और आँखे बंद कर लिए। मोतको सामने देख उसके मुंह से शब्द निकलने लगे......

  ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
  उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।


इसका अर्थ था तीन नेत्र वाले भगवान महादेव जो तीनों कालो को अपने हिसाब से चलाते है। जैसे फूल फूलते हुये अपना सारा सुगध फेलाते है वैसी ही इस सृष्टि में जीवन रूपी सुगंध फेलाने वाले महादेव का में आवाहन करता हु।
में उन्हसे प्रार्थना करता हूँ कि जिस प्रकार फल पकने के बाद बिना कष्ट से डाली से अलग होता है वैसे ही मुजे इस जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्ति दे/ जीवन मृत्यु के भय से मुक्ति दे या मोक्ष दे।( pleas read note*)


महादेव द्वारा चिरंजीवी होने का वरदान | mahadev dvara cnirajivi hone ka vardan

जैसे ही यमराज मार्केंडेय के पास आये उन्होंने अपना यमपाश उठाया और मार्केंडेय पर चलाने वाले ही थे तभी विशाल आवाज के साथ यमराज पर प्रहार हुवा ओर वह पीछे हो गए।
यमराज के कानों में आवाज घूमने लगी,"तुम्हणे मेरे शरण मे आये हुए बालक के प्राण हरने की हिम्मत कैसी की?"
जो यमराज पहले क्रोध में थे वही यमराज आवाज सुन कर शांत हो गये। स्वयम कालो के काल महाकाल उनके सामने थे। उन्होंने सर झुकाते हुये और नर्म आवाज में कहा," प्रभु मुझे शमा करे पर आयु पूरी होने के बाद जीवों के प्राण हरने का कार्य आपने ही मुझे सोपा है। इस बालक की आयु अब समाप्त हो चिकिये इसलिए मुझे इसके प्राण हरने पड़ेगे , यही मेरा धर्म है।"
इस बात पर महादेव ने कहा ,"में इस बालक को चिरंजीवी होने का वरदान देता हु। मेरे इस वरदान के कारण तुम्हारे धर्म में कोई बाधा नही आयेगी।"
शिव का यह वरदान सुन यमराज उन्हें प्रणाम कर अपने धाम लोट गये।
महादेव का वरदान पाकर मार्केंडेय मृत्यु के भय से मुक्त हो गया। महादेव ने मार्केंडेय से कहा तुम्हणे मुजे बुलाने के लिए जो मंत्र  बोला है । वह मंत्र महामृत्युंजय मंत्र के नाम से जाना जाएगा। और जो प्राणी इसका जाप करेगा वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाये गा। फिर महादेव अंतर्धान हो गए।
मार्केंडेय अपने घर लौट आये और अपने माता पिता के साथ रहने लगें। आगे जाकर उन्होंने भारत भ्रमन किया और अनेक महान रचनाये रची।

Note-

महामृत्युंजय मंत्र संस्कृत में लिखा गया है। जिस प्रकार से संस्कृत के एक शब्दासे अनेक अर्थ निकलते है। उसी प्रकार इस मंत्र के भी अनेक अर्थ निकलते है । वह भी अर्थ सही माना जाता है| 

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