क्यों हुआ समुद्र मंथन ? क्यों छोड़ दिया माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को? | kyo huva samudra manthan? kiv chhod diya devi laximine bhagvan vishnuko?
क्यों हुआ समुद्र मंथन ? क्यों छोड़ दिया माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को?
एक बार दुर्वासा ऋषी स्वर्ग से लोट रहेथे तभी उन्हें आते हुए इन्द्र देव दिखे। वह हाथी पर सवार थे ।उन्हें देखकर उन्हें लगा कि यह भगवान विष्णु ही है। इसलिए उन्होंने उनके तरफ फूलोकी माला फेकी लेकिन इन्द्र ने उन्हें अनदेखा किया ओर माला उनके हाथी एरावत पर गिरी ओर उसने वह माला झटककर नीचे गिर दी ओर अपने पैरो तले रोंदी। यह देख कर ऋषी को क्रोध आया ओर उन्होंने उसे शाप दिया कि वह श्री हिन ओर शक्ति हिन हो जायेगे। तब इंद्र को सारी सम्पत्ति सागर में गिर गए ओर उसके साथ ही उसकी शक्तियां भी चली गई । ओर वहीं देवी लक्ष्मी भी सागर में चली गई ।असुरोको जब यह पता चला कि इंद्र शक्ति हिन हो गया है , तब उन्होंने स्वर्ग पर आक्रमण कर स्वर्ग पर अपनी सत्ता स्थापित की ओर सभी देवतावो को स्वर्ग से हकाल दिया।
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samudra manthan |
सारे देवता पराजय ओर स्वर्ग हात से जाने के कारण मदत मांगने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु पहलेसे ही दुखी थे लक्ष्मी जी के चले जाने के कारण। उन्होंने जब सभी देवता ओ की बाती सुनी तब उन्होंने कहा इसपर एक उपाय है । अगर सभी देवता सागर मंथन करे तो ही उन्हें सब कुछ प्रापत हो सकता है , जो उन्हें चाहिये। लेकिन देवतावोमे इतनी शक्ति नही की वह सागर को मंथ सखे इसलिए उन्हें असुरोका सहारा लेना पड़ेगा। तब सभी देवता नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि यह असंभव हैं, असुर हमे कभी मदत नही करेंगे। तब विष्णु ने कहा जरूर करेगे । लेकिन देवता बोले उनके पास तो अब सबकुछ है अब किसलिए करेगे मदत । तब भगवान विष्णु बोले लालसा इंसान को समाधान से जीने नही देती,हम उन्हें अमृत का मोह दिखाएंगे ओर दोनो मिलकर अमृत बाटनेकी बात करेग।
ओर वैसाही हुवा जेसे विष्णु चाहतेथे। देवता अपनी शक्ति को पाने के लिए, असुर अमृत के लिए सागर मंथन को तैयार हो गये।
तब भगवान विष्णु ने वासुकि नाग की मंथन के लिए रस्सी बने के लिए कहा ,वासुकि तो तैयार हो गए पर उन्होंने कहा है भगवान जब मुझे रस्सी के रिप में उपयोग किया जाएगा तब मेरे मुहसे ज्वाला निकलेगे वह में रोक नही सकता वह देवताओंके लिए घातक होगी ।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि में इसका प्रबंध कर दुगा।
फिर वह मन्दराचल पर्वत के पास गए और उनसे मंथनी बननेको कहा , वह भी उनकी इस बात के लिए राजी हो गए ।
उन्होंने भी कहा लेकिन में सागर पर रहुगा कैसे ,विशाल सागर में डूब जाउगा इस पर भगवान विष्णु बोले में स्वयं विशाल कच्छप का अवतार लेके तुम्हे अपने पीठ पर धारण करुगा जिससे तुम सागर में डूबोगे नही।
जिस दिन सागर मंथन था उस दिन भगवान विष्णु ने देवताओसे कहा कि वह वासुकि की मुह वाली बाजू पकड़ेंगे।जो शक्तिशाली होगा वह मुह के तरफ से पकड़ेगा ऐसी अफवा छोड़ दी। जब यह बात असुरोको पता चली तब उन्होंने हट कर मुह की बाजू ले ली ओर पूछ देवताओ को देदी।
सागर मंथन शुरू होनेके बाद भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर धरे रखा। और जब मंथन शुरू हो गया तो वासुकि नाग आग उगलने लगा और उससे असुरोकी सेना जलने लगी पर समुद्रमंथन चलताही रहा।
समुद्र मंथन के शुरू होने के बाद सबसे पहले समुद्रसे कालकूट विष निकल आया उसके प्रभाव से सारे देव फिके पड़ने लगे। उस समय सबने उस विष से डरकर महादेव की प्रार्थना की ओर उन्हें विष पीनेकी प्रार्थना की संसार के रक्षा हेतु महादेव विष पीनेके लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपनी हथेलीमे विष लेकर उसे पी लिया पर अपने गलेसे नीछे नही उतारने दिया। उन्होंने विष को गलेमें ही रोक लिया। जिसके कारण उनका गला नीला हो गया और उनका नाम नीलकंठ पडा ।
महादेव के विष पीनेके बाद फिर से समुद्र मंथन शुरू हो गया ।
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उससे दूसरा रत्न निकला कामधेनु गाय ,उसे ऋषियोने रख लिया। उसके बाद तीसरा रत्न उच्चैःश्रवा घोड़ा निकला जिसे असुर राज बली ने रख लिया। चौथा रत्न निकाला ऐरावत जिसे देवराज इंद्र ने अपने पास रख लिया। पाचवा रत्न निकाला कौस्तुभमणि जिसे विष्णु भगवान ने धारण कर लिया।छटा रत्न निकल कल्पवृक्ष ओर उसके बाद रंभा, अप्सरा निकली इन दोनोंको देवोन अपने पास रख लिया। उसके बाद निकली देवी लक्ष्मी जिन्होंने भगवान विष्णु को अपना वर चुन लिया । उसके बाद कन्या रूप में वारुणी निकली जिसे असुरोने अपने पास रख लिया। वारुणी को मदिरा भी कहा जाता हैं। उसके बाद निकले चंद्रमा जीने भगवान शिव ने धारण किया जिसके कारण उनके शरीर मे शीतलता बनी रहे और विष की आग ठंडी रहे। उसके बाद पारिजात वृक्ष ओर शंक निकला ।ओर सबसे आखिर में धन्वंतरि वैद्य निकले जिनके ह
हात में अमृत कलश था ।
उनके बाहर निकलते ही असुर वह कलश लेकर भाग गए। देवता यह देखकर डर गए ,तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में वहा आकर सबका ध्यान अपनी तरफ खीच लिया । उनके सुंदर रूप से मोहित होक असुर उसके पास गए और पूछा कोन हो तुम ,तब मोहिनी ने कहा में तो बस साधराम कन्या हु यहासे गुजर रहीथी तब आपको झगड़ते देखा और रुक गयी। में आपकी कुछ मदत कर सकती हूं क्या तब असुर बोले आप यह अमृत बाटनेमे हमारी मदत कर सकती है।मोहिनी रूप से मोहित असुरोको उनके आगे कुछ नही दिख रहता। तब मोहिनी ने अमृत घड़ा लिया और दोनोंको अमृत बाटने लगी। पर देवो को अमृत ओर असुरोके वक्त वह घड़ा बदल देती जिससे सिर्फ देवता अमृत पान कर सके , घड़ा बदलने वाली बात को एक असुर ने देख लिया और वह रूप बदल कर देवताओमे आकर बेठ गया । और उसने भी अमृत पान किया।
जब यह बात विष्णु भगवान को पता चली तब उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर उड़ा दिया तबसे उसका सर ओर धड़ अलग हो गये और उनका नाम राहु और केतु पड़ गया।
अमृतपान के बाद विष्णु वहासे चले गए। तब असुरोको पता चला हमारे साथ धोखा हुवाहे । ओर उसके बाद देव असुर संग्राम शुरू हुवा उसमे देवराज इंद्र की विजय हुई और उन्होंने अपना स्वर्ग वापिस मिल गया। और वही देवी लक्ष्मी भी अपने धाम वापस लौट आयी।
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