श्रेष्ठ दानी कर्ण कीव है ?
श्रेष्ठ दानी कर्ण कीव है ?
यह कहानी तबकी है जब अर्जुन और कर्ण में से कोंन श्रेष्ठ है, इसकी चर्चा हस्तिनापुर में हुआ करती थी ।अर्जुन खुदको श्रेष्ठ धनुर्धर माना करते थे। और शायद ओ थे भी , कींव ना हो उनके गुरु द्रोणाचर्य उन्हें दुनियका श्रेष्ठ धनुर्धर कह ते थे। और आजतक उन्हें कोई ऐसा ना मिलाथा, जो उन्हें परास्त कर सके। इससे ओ खुश भी थे पर उन्होंने ये बात बार बार सताती थी कर्ण सबसे श्रेष्ठ दानवीर है। लोग उन्हें दानवीर कर्ण केहतेथे। यह बात उन्हें चुबतिथी।
कृष्ण और अर्जुन |
इस बात को लेकर वह कृष्ण से मिलते है। और उनसे कहते हैं
"प्रभु में एक राजकुमार हूं और में कर्ण से ज्यादा दान कराताहु पर सभी कर्ण को दानवीर कहते हैं, लेकिन में उससे ज्यादा दान करता हूं इसलिए में श्रेष्ठ दानी हूं।"
यह बात सुनकर कृष्ण कहते है ,
"ठीक है, कल सुबह तुम मेरे साथ आना ।"
अर्जुन दूसरे दिन कृष्ण के सात जाते हैं। कृष्ण उन्हें बोहत सरा सोना देतेहे और कहते हैं। यह तुम गरीबों में बाट दो।
यह सुनकर अर्जुन अपने हतोसे हर एक गरीब को सोना देने लगते हैं। सोना दान करते हुए शाम हो जाती हैं ,और उनका सोना बाटना ख़तम हो जाता हैं।
अर्जुन सोना बाटनेसे खुश होते हैं।
दूसरे दिन वह अर्जुन को साथ ले जाते है,और उतनाही सोना वह कर्ण को देते है और दान करानेको कहते हैं ।
कर्ण लोगोंको इकठ्ठा कारातेहे और कहता है में तुम्हें यह सोना दान करता हूं और वह वाहासे चला जाता है।
यह देख कर कृष्ण अर्जुन से कहता है,
"तुमने कल जो दान कियाथा वह खुदका नाम लोगोमे पोहाचा ने और लोग तुम्हें श्रेष्ठ कहे इसलिए किया था।इसलिए तुम्हें हर एक को अपने हाथों दान किया था । तुम्हारे अन्दर स्वार्थ था। पर कर्ण का मन साफ था ,ना कोई स्वार्थ, ना कोई मोह । और उसके बारे में कोन क्या सोचेगा यह सोचे बिना वह सब लोगोंको देके चला गया । इसलिए कर्ण श्रेष्ठ दानी है।"
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