शिव को क्यों कहा जाता हैं अर्धनारिश्वर ? | shiv ko kiv kaha jatahe ardhnari shwar ?
शिव को क्यों कहा जाता हैं अर्धनारिश्वर ?
इस के बारे मैं वैसे कहीं कहानियां प्रचलित है , इन मेसे में आपको मेरी पसंदीदा कहानी बताने वाला हूं।
जब ब्रम्हा , विष्णु ओर महेश का जन्म हुआ। उसके बाद कहीं साल बीत गए ,तब तीनों ने मिलकर विश्व की रचना करने का सोचा। विश्व के रचना का कार्य ब्रम्हदेव के पास दिया गया। ब्रम्हा ने रचना कार्य शुरू तो किया लेकिन वह उतनी शक्ति इस कार्य में डालना चाहिए वह नहीं डाल सके, इसलिए वह शिव जी के पास गए ,ओर उन्होंने उनके सामने अपनी समस्या रखी । इस पर शिव जी ने अपनी आधी शक्ति निकाल कर उन्हें दी ओर उन्हासे कहा कि आप मेरी शक्तिसे संसार का निर्माण कर सकते है। ब्रम्हा जी ने उन्हें वचन दिया कि कार्य पूरा होने के बाद वह शक्ति उन्हें लोटा देगे।
ardhnariswar/ nataraj |
महादेव पर शनि की दृष्टी का प्रभाव ।
संसार का निर्माण
फिर ब्रम्हा जीने उस शक्तिसे सारे संसार का निर्माण किया।उसमे मनुष्य,पशु पक्षी, देवता, राक्षस, गंधर्व, पेड़ पोधे इ शामिल थे। इस तरह वह शक्ति प्रकृती के हर वस्तु में वास करती हैं इसलिए प्रकृति चलती हैं इसलिए वह शकती स्वयं प्रकृति है ऐसा भी कहा जाता हैं। वह हर जीव का जन्म हो ने से उस जीव में वास करती हैं इसलिए उसे आदिशक्ति भी कहा जाता हैं, इसका मतलब सर्व प्रथम शक्ति है।
जब प्रकृति के निर्माण का कार्य पूरा हुआ तो ब्रम्हा जी वह शक्ति लौटने के लिए शिव के पास गए । पर भगवान शिव ने कहा मेने अपनी आधी शक्ति एक बार निकाले दी तो वह फिर मुजासे नहीं जुड़ सकती, इसका अब स्वतंत्र अस्तित्व है। इस लिए में इसे वापस नहीं ले सकता। ओर उन्होंने शक्ति को पुंहा धारण करने से मना कर दिया।
शक्तिका स्री रूप में जन्म
लेकिन ब्रम्हा जी जानते थे शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं, इसलिए उन्होंने दोनों को एकत्र मिलाने की ठान ली। फिर ब्रम्हा के कहने पर शक्तिने उनके पुत्र प्रजापति दक्ष के घर स्री रूप में जन्म लिया ओर उनका नाम सती रखा गया। उनका विवाह महादेव से तो हो गया पर वह अपने पूर्ण रूप को ना पा सकी ओर उन्हमे मनुष्य के गुण होने के कारण उस जन्म में वह अपना कार्य पूर्ण ना कर सकी (इसकी एक अलग कहानी है)।फिर शक्ति ने दूसरी बार जन्म लिया। इस बार उन्होंने पर्वत राज हिमालय के यहां जन्म लिया । इसलिए उनका नाम पार्वती रखा गया। उन्होंने शिव की कठोर तपस्या की जिसके कारण शिव प्रसन हुए , ओर उन्होंने पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस जन्म ने शक्ति ने अपने पूर्ण रूप को तपस्या द्वारा प्राप्त कर लिया था।
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शिव और शक्तिक मिलान
एक दिन जब भगवान शिव ओर माता पार्वती कैलास पर्वत पर आराम कर रहे थे तब वहा पे महादेव के परमभक्त ऋषी भृगु उनसे मिलने आए।
जाते समय उन्होंने भगवान शिव से कहा," प्रभु में आपकी प्रदक्षिणा करना चाहता हूं।"
तब भगवान शिव ने कहा ,"तुम जरूर मेरी प्रदक्षिणा कर सकते हो।"
लेकिन उस समय माता पार्वती उनके पास बैठी थी , ऋषी नहीं चाहते थे कि वह किसी स्री कि प्रदक्षिणा करे यह बात समजकर माता पार्वती महादेव के ओर नजदीक बैठी।
तब महादेव ने कहा ,"आपको हम दोनों की प्रदक्षिणा करनी होगी।"
पर ऋषी नहीं माने उन्हेनें एक स्री कि प्रदक्षिणा करना पसंद नहीं आया । इसलिए उन्होंने एक युक्ति कि वह एक भवरेका रूप धारण कर महादेव ओर माता पार्वती के गर्दन के बीच में से जाने की कोशिश करने वाले थे ।
उनकी यह चाल देखकर महादेव में माता पार्वती समा गई।
इससे महादेव का आधा रूप स्री का ओर आधा पुरुष का दिखने लगा।
यह देखकर ऋषी समज गए की शिव और शक्ति अलग नहीं है ।
इससे ऋषी यह समाज गए के एक स्री के बिना पुरुष अधूरा होता है लेकिन स्री का भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता हैं।
ओर उन्होंने दोनों की प्रदक्षिणा की और वह महादेव ओर माता पार्वती का आशीर्वाद लेकर चले गए।
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