अहिरावण ओर क्या हनुमान जी को पुत्र था ?


अहिरावण ओर क्या हनुमान जी को पुत्र था ?

प्रभु राम और रावण युद्ध के दौरान एक वक्त ऐसा आया की रावण को लगने लगा अब उसकी हर निच्छित है।
उसका पुत्र मेघदूत जिसने इंद्रा को हराया था। ओ भी अब लक्ष्मन के हातो मारा गयाथा । ओर उसका भाई कुंभकरण भी मारा गए था। वह अब निराश ओर दुख से भर गया था ।

तभी उसे अपने दोस्त अहिरावण को याद  आई । अहिरावण रावण का दोस्त तो थाही उसके साथ मायावी शक्तियोका स्वामी भी था। अहिरावण उसी वक्त रावण से मिलने आया। वह रात का समय था । अहिरावण ने जब रावण की सारी स्थिति देखी तो उसने उसे वचन दिया कि में आज रात ही राम और लक्ष्मण को कैद कर लेगा और पाताल कि देवी को बलि चढ़ा देगा तुम्हें फिक्र करने की कोई बात नहीं है।
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हनुमान 

अहिरावण राम के खेमे में रूप बदलकर घुसता है। वह राम की कुटिया में जाकर अपनी माया से राम ओर लक्ष्मण को बेहोश कर देता है। ओर उन्हें अपने साथ पाताल लोक ले  जाता हैं। जब राम और लक्ष्मण की गायब होने की खबर सबको मिलती है तो सब उन्हें धुड़ने लगते हैं। पर उन्हें ओ कहीं पे भी नहीं मिलते।इस बात का समाचार जब विभीषण को लगता है तो वह हनुमान जी से कहते है। यह निश्चित ही किसिकी माया है और ऐसा मायावी काम अभी एक की कर सकता हैं ।ओर ओह रावण का मित्र अहिरावण कर सकता है। वह पाताल लोक का राजा है अगर आप वह जा सके तो हम समय रहते उन्हें छुड़ा सकते हैं।

हनुमान जी पाताल लोक के लिए तुरंत निकलते हैं। जब ओ वह पोहाचते है तो वह देखते हैं की वहा पर द्वारपाल एक वानर रूपी मनुष्य है।यह देख कर ओ चोक जाते है। वह द्वारपाल के पास जाकर पूछते है कोन हो तुम
द्वारपाल उत्तर देता है "में हनुमान पुत्र मगर -ध्वज हूं।
हनुमान जी कहते है असंभव "हनुमान तो ब्रह्मचारी है,तो तुम उनके पुत्र कैसे हुए?"
इसपर वह कहता है जब हनुमान जी आकाश मार्ग से भ्रमण कर रहेत्ते तो उनकी पसीने की बूंद समंदर में गिरी ओर वह एक मगर ने निगल ली तब मेरा जन्म हुआ। इसलिए मेरा नाम मगर ध्वज है।"
यह बात सुनकर हनुमान जी उसे अपना परिचय देते है ।
उन्हें मिलकर मगर ध्वज बोहत् खुश होता है। हनुमान जी उससे पूछते है ,यहा पर दो सुंदर युवकों लाया गया है क्या वह इस बात पर हामी भर्ता है। हनुमान जी बताते है कि वह उनके प्रभु राम और लक्ष्मण है। ओर उसे कहते हैं कि उन्हें अंदर जाने दिया जाए। इस बात पर मगर ध्वज कहता है, अहिरावण मेरे स्वामी है और उनकी अज्ञा के बिना किसीको अंदर नहीं जाने दे सकता।

उसकी स्वामी निष्ठा देख हनुमान जी खुश होतेहे ओर उसे कहते है में तुम पर खुश हूं पर मुझे भी मेरे स्वामी को बचाना है इस लिए ने तुम्हें युद्ध का आव्हान करता हूं। दोनों में युद्ध होता है। हनुमान जी उसे हराकर बांध देते हैं और अंदर जाते है।
अंदर जाकर वह बलि देने वाली देवी को हटाकर खुद ही रूप बदल कर उसकी जगह खड़े हो जाते है। जब अहिरावण बलि देने आता है तब वह अपने असली रूप में आकर उससे युद्ध कर उसका वध करते हैं।तब राम और लक्ष्मण के ऊपर की उसकी माया तुट जतिहे ओर वह जग जाते हैं। हनुमान उन्हें सारी कहानी बताताहे ,ओर उन्हें अपने साथ ले जाता हैं । रास्ते में उन्हें मगर ध्वज दिखता है । रामजी हनुमान से पूछते है कोन है यह। तो हनुमान जी बताते हैं यह मेरा पुत्र है और उन्हें कहानी बताते है। तब राम जी हनुमान को आज्ञा देते है कि उसे मुक्त करो और उसे इस पाताल नगरिक राजा बनाओ।
ओर हनुमान जी उसे मुक्त कर पाताल नगरिक राजा बानातेहे।ओर राम और लक्ष्मण को लेकर लंका चले जाते है।

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