केसे मिला कर्ण को परशुराम का शाप? | kese mila karn ko parshuram ka shap?


केसे मिला कर्ण को परशुराम का शाप?

अर्जुन को बड़े बड़े ज्ञानी ऋषि मुनि योसे शिक्षा मिलिथी इसके साथ ही इन्द्र ओर भगवान शिव के आशीर्वाद के रूप में उन्होंने बड़े बड़े अस्त्र ओर शस्त्र मिले थे।
परन्तु कर्ण को नहीं किसी बड़े ऋषि मुनि से शिक्षा मिलित थी नहीं को अस्त्र  उनके पास थे । थे तो सूर्य देव द्वारा दिए गए कवच कुंडल। कर्ण को अपनी इस कमी से उभरने के लिए  किसी बड़े ज्ञानी द्यारा शिक्षा पाना जरुरिथा। इसलिए वह गुरु की खोज में चल पड़े ।

भ्रमण करते करते   वह महिंद्रा पर्वत पर पोहाच गए।
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महिंद्रा पर्वत 


 कर्ण  परशुराम भेट 

वहा पोहाचने पर उन्हें पता चला भगवान  परशुराम का   निवास इसी पर्वत पर है। ओर उन्हें पता था की वह एक महान ज्ञानी ओर शस्त्र विद्या के जानकार है। साथ ही वह भीष्म पिता महा के गुरु भी है। ओर वह उनसे सीखना चाहते थे।
इसलिए वह उनके आश्रम की खोज में महेंद्र पर्वत पर जाते हैं। उन्हें वहा उनका आश्रम मिलता है। ओर कुछ प्रयास करने के बाद उनकी मुलाक़ात गुरु परशुराम से हो जतीहे।
वह उनसे कहते हैं।
"है मुनि श्रेष्ठ में आपसे विद्या ग्रहण करने के लिए आयाहू, कृपया मुझे आपका शिक्ष बना लीजिए है। "
इस बात पर परशुराम बोले
"मेने क्षत्रियों को शिक्षा न देना का प्रण किया है। में बस ब्राम्हण नो को शिक्षा दे ताहु। क्या तुम क्षत्रियों हो ?"
"नहीं"
"तो क्या तुम ब्राम्हण हो।"
"....हा।"
कर्ण झूट बोल देता हैं।


उस दिन से वह परशुराम के पास विद्या ग्रहण करने लगता है। उसकी प्रगति और रुचि देख ओ बहुत खुश होते हैं। असेही कई साल बीत जाते ।कर्ण की शिक्षा पूरी होनेको होती लेकिन इन्द्र की उसपर नजर होती हैं ।ओर इद्र तो अर्जुन के पिता थे तो वह कर्ण को केसे विद्या प्राप्त करने देते।

कर्ण को शॉप 


एक दिन परशुराम एक पेड़ की छाव में आराम कर रहे थे। उनके पास की कर्ण बैठ थे। ओर उन्होंने उपने जंग से परशुराम को तकिये की तरहा सहारा दे के रखा था। इस बात का फायदा उठा के इन्द्र देव एक भवरे का रूप लेकर अतेहे।
वह कर्ण की जांग में छेद करने लगते है । कर्ण को इससे बोहोत दर्द होने लगता है।पर गुरु आराम कर रहे हैं यह देखकर वह थोड़ा भी नहीं हिलाते। थोड़ी देर बाद रक्त की धार बहते हुए  परशुराम के नीचे चली जाती हैं। ओर उस के गीले पन से वह उठ जाते है।
वह उठाने के बाद भवारा रूपी इन्द्र वहसे चला जाता है।
परशुराम कर्ण के जांग से निकलती हुए रक्त की धार देखकर चोक जाते हैं। पर पल में ही संभाल कर वह कर्ण को बोलते है
" कोन हो तुम ?"
"...में..में,,.."
"में में क्या में जान गया हूं तुम ब्राम्हण नहीं हो ,कोई भी ब्राम्हण एतना दर्द सहन नहीं कर सकता बताओ कोन हो तुम?"
"में कर्ण हूं , महाराज धृतरष्ट्र के सारथी का पुत्र, में तो बस शिक्षा पाना चाहता था। इसलिए मैने झूट कहा।"
"बस मुझे कारण ना दो झूट तो झूट है और तुमने मेरी प्रतिज्ञा भी भंग कर्दी, में परशुराम तुम्हें शाप देता हूं कि जिस वक्त तुम्हीं इस विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी , उस वक्त तुम यह विद्या भूल जाओ गे। ओर अब महेंद्र पर्वत से निकाल जाव।"
ओर कर्ण वाहसे निकाल जाता हैं।
उसे विद्या तो मिलतिहे पर एक शाप के साथ।
इसकी कीमत उसे महाभारत के युद्ध में चुकानी पड़ती हैं।

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