कंस ने क्यो अपनी बहन को बंधी बनाया ?और कृष्ण जन्म कथा.| kans ne kiv apni bahan ko bandhi banaya or krushan janm katha


कंस ने क्यो अपनी बहन को बंधी बनाया ?और कृष्ण जन्म कथा.

द्वापरयुग में पाप बढ़ रहाथा इस कारण वश धरती के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने धर्म रक्षा के लिए नया अवतार लिया जो भगवान कृष्ण के नाम से प्रसिद्ध है । उनके जन्म की एक अनोखी कहानी है।


कंस का पिता  विरोध 

द्वापरयुग में उग्रसेन नामक राजा मथुरा पर राज्य कराता था।  राजा स्वभाव शांत थे और प्रजा में प्रिय भी थे। लेकिन उनका पुत्र कंस ठीक उनके विपरीत था ।वह स्वभावसे ही कपटी ओर छली था। वह मायावी होने के साथ साथ के राक्षोसोका स्वामी ओर मित्र भी था। उसके पिता उग्रसेन के बाद राज पाठ सभी उसीका होने वाला था। पर वह इतना इतजार नही कर सका और अपने पिताके खिलाप उठाव कर उन्हे बंदी बनालिया ओर कारावास में डाल दिया। जिस किसीने भी उसके खिलाफ आवाज उठाई उसे मार दिया गया। ओर कंस मथुराक राजा बन गया।
krushan  janm katha ,bal krushan
बाल कृष्ण 
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 बहन और बहनोई को कारागार 

वह स्वभाव से केसा भी हो पर वह अपनी बहन देवकीसे बड़ा स्नेह करता था। उसने अपनी प्यारी बहन की शादी यदुवंशी राजा वसुदेव से कर दी। शादी बड़े धूम धाम से हुयी। जब कंस अपनी बहन को विदा करनेके की लिए जा रहाथा तभी एक आकाश वाणी हुई,
"है कंस जिस बहन को तुम आज इतने धूम धाम से विदा कर रहे हो उसका आठवा पुत्र तुम्हारी मृत्यु का कारण बनाने वाला है"।
यह आकाश वाणी सुनकर कंस के होश उड़ गए। ओर वह क्रोध से आगबबूला हो गया। मृत्यु का नाम सुनकर उसका अपने बहन के ऊपर का सारा प्यार बर्फ की भाती पिघल गया ओर उसे अब वह उसकी शत्रु लगने लगी जिसका पुत्र उसके मृत्यु का कारण बने गा। उसने सोचा अगर वसुदेव ही नही रहेगा तो देवकीको पुत्र कैसे होगी। तो उसने वसुदेक को मारने की ठान ली । पर देवकीने उससे विनती की ,की वह वसुदेव को छोड़ दे और वह उसकी आठवी संतान उसे लाकर देगी। कंस ने उसकी विनती तो स्वीकार की पर दोनों को जाने नही दिया। उसे लगा क्या पता दोनो छल करेगे ओर उसे संतान नही देगे।इसलिए उसने दोनोंको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया। दिनके आठो प्रहर उनपे कड़ा पहरा बिठाया जिससे वह कुछ चालाकी न कर सके।

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कृष्ण  जन्म 

ऐसे ही दिन गुजरते गए और वह दिन आ ही गया जब उसे पहला पुत्र हुवा । यह बात तुरंत कंस को पता चली   ओर वह कारागृह में आया। उसने देवकीसे पुत्र की मांग की तब देवकीने कहा ," भैया यह तो मेरी पहली संतान है यह आपका कुच नही बिगाड़ेगी ,आपको तो आठवीं संतान चाहिए ना में वह आपको दे दूँगी इसे जाने दीजिए।"
लेकिन मृत्यु के भय से भयभीत कंस ने उस की एक ना सुनी और वह उस नन्हे अबोध बालक को लेकर चल गया। उसने उसे एक पत्थर पर पटक कर मर डाला । इस तरह देवकी की दूसरी ,तीसरी,...... करके सात संतोनोको मार डाला ।
देवकी अब आठवी बार गर्भवती थी। आखिर ओ दिन आ ही गया ,भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया उसका नाम श्रीकृष्ण रखा गया। वह बालक स्वयं नारायण का अवतार है यह वसुदेव समज गए थे। उन्हें सोच लिए इस बालको बचना चाहिए । उन्होंने जब कारागृह के कोठरीक़े बाहर देखा तो सब पहरेदार साये हुए थे, इसे उन्होने भगवान का संकेत माना और वह उस बालक को उठाके ले चले । बालक के पैरों के स्पर्श मात्र से कालकोठरी का दरवाजा खुला गया। ओर वह सोते हुए पहरियोके के बीच से कारागृह से बाहर आगये। मौसम अनुकूल नही था बारिश हो रहीथी, बिजली चमक रहीथी , चारो तरफ बस घना अंधेरा दिख रहथा। वसुदेक भी पीछे मुड़ने वाले नही थे । उन्होंने अपने इस पुत्र को अपने सबसे अच्छे दोस्त गोकुल में रहने वाले नंद के यह छोड़ने का सोच लिया था। उन्होंने कृष्ण को एक टोकरी में रखा और टोकरी सर पर लेकर चल दिये। जब वह यमुना किनारे पोहचे तो यमुना का पानी उफान पे था ,यमुना की लहर सब बहांके ले जा रहीथी फिर भी वह पानी मे उत्तर गए और टोकरी सर पे रखकर यमुना पार करने लगे । लेकिन एक वक्त इस आया की पानी उनके सर के ऊपर से जाने लगा लेकिन वह फिर भी आगे बढ़ते रहे। लेकिन पानी जब कृष्ण के पैर को स्पर्श किया ,जो कि टोकरिमेसे थोड़ा बाहर आया था, तब पानी का स्तर कम होता गया और पूरी यमुना पार करते हुये पानी सुरक्षित स्तर पर रहा।

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कृष्ण गोकुल में 

जब वासुदेव गोकुल पोहचे तो वह नंदके घर गए । संयोग वश नंद के घर पर भी एक कन्या ने उसी दिन जन्म लियाथा। नंद ने जब अपने मित्र वसुदेक को देखा तो बोहत खुश हो गये। ओर उसने वसुदेव से कहा,"मित्र तुम्हे कब कारागृह से छोड़ा में तुम्हे देखकर बोहत खुश हूं।"
तब वसुदेक ने कहा ,"मुझे छोडा नही ,यह तो भगवान की कृपा है जो में वहासे निकल आया, ओर अब में शायद अपनी आठवी संतान को बचा पाउगा।"
वासुदेव ने नंद को पूरी घटना बताई और कहा ,"तुम मेरे पुत्र का संभाल करो और इसे कंस की नजरोसे बचाव।"
नंद उसके लिए तैयार हो गया ओर नंद ने वसुदेक से कहा,"तुम भी रुक जाव तुम्हे भी तो कारागृह से मुक्ति मिलेगी।"
लेकिन वसुदेव नही माने,"अगर में रुख गया तो कंस मुझे ढूंढने के लिये सेना भेजे गा और उसने एक बार मुझे ढूंढ लिया तो वह कृष्ण को भी ढूंढ लेगा और में अपने एक मात्र पुत्र को बचाने का अवसर भी खो दुगा।"
नंद उसकी बात मान गया और जाते हुए वसुदेव ने नंद उसकी पुत्री मांगी। माता और पुत्री दोनो सोयेथे । नंद उसकी पुत्री जो अपनी माता यशोदाके पास सोयी थी उसे वसुदेक को दिया और उसकी जगह कृष्ण को रख दिया।दोनो ने यह सोचा की कंस लड़की होने के कारण उसे नुकसान  नही पोहचायेगा ।ओर फिर वसुदेव सुबह होनेसे पहले कारागृह लोट आये।

तब कारागृह के पहरियोकि नींद खुल गइ। ओर उन्हें पता चला कि देवकी को पुत्री हुई हैं। उन्होंने यह बात कंस को बताई। कंस कारागृह में आ गया और उसने उस पुत्रिको भी देवकी से छीन लिया । तब उसने उसे पत्थर पर पटकने के लिए उसे ऊपर उठाया तो वह हात से फिसलकर हवा में उड़ने लगी ।
फिर उसने देवी का रूप धारण कर कहा ,"है पापी कंस तुम्हारा वध करने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है।"
ओर वह वहासे अन्तर्धाम हो गई। कंस हतबल होक देखता रहा | 
इस प्रकार कृष्ण जन्म की कहानी पुरु होती है | 
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