केसे प्राप्त हुआ सत्यवती को शादिसे पहले पुत्र ?| kese prapt huva satyavtiko shadise pahale putra? ( hindu mythology)


केसे प्राप्त हुआ सत्यवती को शादिसे पहले पुत्र ? | kese prapt huva satyavtiko shadise pahale putra?

एक दिन ऋषि पराशर यमुना नदी पार करने के लिए एक निषाद के पास पोहचते है । पराशर ऋषि को देख कर निषाद राज बोहत खुश होते हैं। वह ऋषि से विनती करते है की वह उनके साथ उनके घर चले और कुछ दिन उनके साथ रहकर उन्हें सेवाका अवसर प्रदान करे। वैसे तो ऋषि पराशर लंबी यात्रा के कारण थके हुए थे ओर वह उच्च नीच का भेद नही मानतेथे । इसलिए उन्होंने निषाद राज का अतिथ्य स्वीकार किया । निषाद राज की बात मानकर वह उसके घर चले गए।

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पराशर ऋषी का निषाद राज द्वारा स्वागत | Parashar rishi ka nishad  dvara swagat

निषाद राज का घर एक झोपड़ी समान था। उसने उसके पास ही दूसरी झोपड़ी बनाइ ओर उसमे पराशर ऋषि की रहने की व्यवस्था की। निषाद राज  वैसेतो गरीब थे पर उनकी मेहनत  देख पराशर ऋषि उनपर खुश हो गए। ओर उन्होंने उस झोपडी में रहना स्वीकार किया।
निषाद राज की एक कन्या थी। वह उनकी दत्तक कन्या थी अतः वह उसे अपनी सगी कन्या ही मानतेथे। वह भी अपने पिता को मदत करने के लिए यमुना नदी पर नाव चलानेका कार्य करतीथी। उसका नाम सत्यवती था पर उसके शरीर से आने वाली मत्स्य की गंध के कारण उसे मत्स्यगंधा भी कहा जाता था। निषाद राज मत्स्य का व्यवसाय करते थे इसलिए उसके शरीर से आने वाली मत्स्य की गंध को सामान्यही माना जाता था ।

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सत्यवती द्वारा पराशर ऋषि की सेवा | satyavati dvara parashar rishi ki seva 

निषाद राज ने अपनी पुत्री को पराशर ऋषि की सेवा का आदेश दिया। अपने पिता का आदेश मान वह नित्य ऋषि की सेवा करने लगी। जैसे सुबह पूजा की तयारी करना , फूल इकठे करना, ऋषि के लिए भोजन करना ,  उनके पेर दबाना यह सब कार्य वह पूरे मन से करती थी।
ऋषि अब अपने आश्रम को लौटना चाहते थे। इसलिए उन्होंने निषाद राज को बोला कि," निषाद राज में कल प्रातः  अपने आश्रम की ओर प्रस्तान करुगा, तुम मेरी यमुना पार करने की व्यवस्था कर दो।"
पराशर ऋषि का आदेश मान के निषाद ने कहा," मेरी पुत्री सत्यवती बोहत कुशल केवट(नाव चलने वाली) हैं । वह आपके साथ आकर आपको नाव द्वारा यमुना पार करा देगी।"
ऋषि ने उसपर सहमति दर्शाई।



पराशर ऋषि का मोह | parashar rishi ka moh

प्रातः के प्रथम प्रहर निषाद कन्या ओर ऋषि पराशर यमुना की ओर चल पड़े। रोज के मुकाबले आज हवामें ज्यादा ही ठंड थी। जब वह नाव के पास पोहचे तो देखा यमुना नदी पर घना कोहरा छाया हैं। कोहरा इतना घना था कि दो गज आगे का भी दिखाई नही दे राहथा।
मत्स्यगंधा यही सोच रही थी कि आज कुछ ज्यादा ही कोहरा है। उसने अपने हाथ मे जो मशाल थी , वह नाव में रख दी और ऋषि को नाव में बैठने की विनती की । ऋषि नाव में बैठ जाते हैं और वह नाव चलाने लगती है।
नाव अब यमुना के पाणी को चीरते हुए आगे बढ़ रही थी। तब ऋषि का ध्यान मत्स्यगंधा की ओर जाता हैं। वह उन्हें आज पहली बार इतनी खूबसूरत दिखती है। वही पर मशाल का मंद प्रकाश उसके शरीर पर पड़ के उसकी खूबसूरती को ओर भी निखार रहाथा। में यह क्या सोच रहा हु ,यह सोचकर ऋषि दूसरी ओर देखते है और खुदको ही कोसते हैं। पर अब उनके मन में सत्यवती की छबि बस गई थी वह उसे बार बार देखना चाहते थे। उनका अपने मन पर काबू नही रहता । वह पुन्ह उसे देखने लगते हैं। इस प्रातःकाल की ठंडी में भी उसे नाव चलानेसे पसीना आ रहाथा। पसीने की एक बूंद उसके माथे से होते हुए उसके गाल से उसके गर्दन तक पोहचती है । यह देख कर ऋषि को वह ओर भी सुंदर औऱ मोहित करने वाली लगती है।
वातावरण में ऐसे ठंडी , घना कोहरा, मंद प्रकाश और एक खूबसरत युवती यह सब ऋषि का मन बहकाने के लिए पर्याप्त थे। पराशर ऋषि उसे देखकर बोलते है,"अति सुंदर, तुम्ह आज बोहत खूबसरत दिख रही हो।"
अपने आप मे खोई सत्यवती उनकी यह बात सुनकर होश में आती हैं उनकी बाते सुनकर उसके मुंह से अनायास ही शब्द निकलता है,"क्या...."
ओर वह लज्जा से सर झुका लेती है।
ऋषि फिर उसे कहते हैं ,"में तुम्हारी सुंदरतापे मोहित हो गया हूं,मुझे काम ने घेर लिया है। में जो चहताहू हो मुझे करने दो ।
पर तुम्हारी आज्ञा के बिना में कुछ नही करुगा।"
ऋषि की यह बात सुनकर वह चौक जाती है ,फिर संभल कर कहती हैं ,"यह कैसे संभव है, में एक निषाद कन्या और आप एक ब्राम्हण हमारा मेल संभव नही।"
इसबात पर ऋषि कहते हैं," में ऐसी बाते नही मानता ,अंतर जात से नही कर्म से होता हैं।"
"लेकिन मेरे शरीर से तो मत्स्य की गंध आती रहती हैं, ओर आप तो मत्स्य को छूना भी पसंद नही करते।"
इसपर पराशर ऋषि अपने कमंडल से पानी निकलते हैं ,ओर मत्स्यगंधा पर छिड़कते है।
फिर कहते हैं ," आजसे तुम्हारी शरीर से सुगंध आयेगा जो कही योजन दूर तक फैलेगा, ओर लोग तुम्हे अब योजनगंधा के नाम से जाने गे।"
"लेकिन..."
"अब कुछ मत कहो , हमे इस यमुना नदी के बीचों बीच घने कोहरेमें कोई नही देखेगा।"
सत्यवती अब तर्कहीन हो जाती है और खुद को ऋषि के हवाले कर देती हैं।


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सत्यवती को पुत्र प्राप्ती | satyavati ko putra prapati

सत्यवती ऋषि को यमुना पार छोड़कर वापस अपने घर आती है । उसका बदला रूप देख निषाद राज उससे पूछते है ,"क्या हुवा।"
वह सारी घटना अपने पिता को बता देती है। निषाद राज पहले तो गुसेमे आ जाता है। लेकिन उसका गुस्सा चिंता में परिवर्तित हो जाता हैं। वह अपनी पुत्री के विषय में चिंता करने लगता हैं।खुद को ही दोष देने लगता है अगर वह स्वयं ऋषि को छोड़ने जाता तो ऐसा कुछ नही होता। लेकिन अब क्या होगा उसे जब संतान होगी तो लोग क्या सोचेंगे ,उसकी शादी केसे होगी। अपने पिता को चिंतित देख सत्यवती बताती हैं कि," पराशर ऋषि ने कहा हैं कि वह नो माह बाद फिर आयेंगे ओर उनकी संतान को साथ लेकर जाए गे।"
इससे निषाद राज को थोड़ी सांत्वना मिलती हैं।
निषाद राज अपनी पुत्री गर्भवती होने के बाद उसे घरसे बाहर नही निकलने देते और लोगोसे छुपाकर रखते है। एसेही नो माह बीत जाते है और सत्यवती को पुत्र की प्राप्ती होती हैं। फिर पराशर ऋषि अपने पुत्र को लेनेके लिए आते हैं। ऋषि आगमन के बाद निषाद राज उनके पैरों में पड़कर पूछता है," है ऋषि वर आप ही बताइए मेरी पुत्री से अब कोन शादी करेगा। उसका आगेका जीवन कैसे कटेगा।"
निषाद राज की यह बात सुन पराशर बड़ी प्रसन्नता से कहते हैं," इसने मुझे तेजस्वी पुत्र दिया है। यह उसकी नियति के अनुसार ही हुवा है। तुम्हे उसके बारेमे चिंता करने की जरूरत नही है। उसके भाग्य में राजयोग है। उसकी शादी किसी राजासे ही होगी।"
ऋषि की यह बाते सुन निषाद राज चिंता मुक्त हो जाते हैं। ऋषि पुत्र को लेकर चले जाते हैं ।आगे जाके वह पुत्र वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध होता हैं।
ओर सत्यवती का विवाह  देवव्रत (भीष्म) के पिता शांतनु के साथ होता हैं।

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