क्यो किया मेनका ने विश्वमित्र का तपोभंग और कैसे बने विश्वामित्र ब्रम्हऋषि?| Kyo Kiya menka ne vishvamitr ka tapobhang or kese bane vishvamitr bramhrushi

क्यो किया मेनका ने विश्वमित्र का तपोभंग और कैसे बने विश्वामित्र ब्रम्हऋषि? | Kyo Kiya menka ne vishvamitr ka tapobhang or kese bane vishvamitr bramhrushi


विश्वामित्र एक महान ऋषि थे लेकिन उससे पहले वह एक क्षत्रिय थे उन्होंने अपने तपोबल से ब्रम्हा द्वारा ब्रम्हऋषि का पद हासिल किया और उन्होंने ही गायत्री मंत्र का निर्माण किया था।

विश्वामित्र एक क्षत्रिय राजा थे। एक बार वह अपनी सेना के साथ जंगल मे शिकार करने गए थे। कुछ दिन पच्छात वह महर्षी वशिष्ठ के आश्रम में पोहच गए। वहा पर उन्होंने ऋषि के दर्शन किये और वहासे जल्दही जाने की आज्ञा मांगी और वशिष्ठ ऋषि ने उन्हें आग्रह पूर्वक रोक लिया। लेकिन विश्वामित्र को लगा कि इतनी बड़ी सेनाका वह कैसे आतिथ्य करेंगे इससे अच्छा हमे यहासे चले जाना चाहिए। लेकिन ऋषि के बार बार आग्रह करने पर वह रुक गए। वशिष्ठ ऋषि ने कामधेनु गाय का आव्हान किया और उस गाय द्वारा दिया गया भोजन सबको परोसा गया। विश्वामित्र आश्रम में चार पांच दिन रहे ,ओर उनके मन मे कामधेनु गाय को अपने साथ लेजाने की लालसा उत्पन्न हुई ।


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विश्वामित्र की लालसा |Vishvamitra ki lalasa

 उन्होंने महर्षी वसिष्ठ से कामधेनु गाय को मांगा पर ऋषि ने उन्हें गाय देनेमें असमर्थता दर्शाई ओर कहा ,"कामधेनु को किसीके साथ जाना हो तो वह खुद जाती हैं।उसपे जबदस्ती करना उचित नही है।"
लेकिन विश्वमित्र एक राजा थे उन्होंने अपने सेनाको गाय को पकडने को कहा। तब गाय भयभीत होकर ऋषि वशिष्ठ के पास आयी और उनसे अपनी रक्षा करने के लिए कहा ,पर मुनि वशिष्ठ बोले,"विश्वामित्र, उनके अतिथि है और अतिथि भगवान होता है। इसलिए वह उन्हें कोई विरोध नही करेंगे।"
इसपर कामधेनु ने कहा," पर आप मुझे खुदकी रक्षा की अनुमति तो दे सकते है ना ?"
ऋषिने कहा,"तुम खुदकी रक्षा करने के लिए स्वतंत्र हो।"
यह बात सुनकर कामधेनु ने प्रचंड बड़ी सेनाका निर्माण किया और उस सेनाने विश्वमित्र की सारी सेनाको नष्ट कर दिया। यह देख कर विश्वामित्र के सारे पुत्र युद्ध मे उतर गए। लेकिन उनमेंसे बस एक पुत्र ही बचता हैं । यह देखकर ऋषि वशिष्ठ बीच मे आते है और बोलते है," है राजन तुम मेरे यहा अतिथि हो और तुम्हे कुछ हो जाये ये मेरे लिए कलंक होगा इसलिए तुम अपने पुत्र को लेकर यहासे चले जाओ। "
अपनी पराजय देख कर विश्वामित्र वहासे चले जातेहै।

विश्वामित्र का प्रतिशोध | Vishvamitra ka pratishod

अपने राज्य वापिस आने के बाद उनका मन प्रतिशोध से भर जाता है। वह अपने एक मात्र पुत्र का राज्याभिषेक कर के खुद तपस्या करने हिमालय चले जाते है। हिमालय की पहाड़ियों में कड़ी तपस्या कर वह महादेव को प्रसन्न करते है। महादेव से सारे अस्र शस्र पाकर ,सारी विद्याएं सीखकर वह वापिस वशिष्ठ के आश्रम में आते हैं।
अग्निबाण चलाकर वह आश्रम को आग लगा देते हैं। यह देख ऋषि वशिष्ठ क्रोधित होकर अपना धनुष उठाते हैं और युद्ध करने के लिए आते है। आतेही वह विश्वामित्र को कहते हैं,"राजन आज में तुम्हारा सारा क्षत्रिय घमंड चूर चूर कर दूंगा  और  तुम्हे तुम्हारी जगा दिखा दूंगा।"
यह सुनकर विश्वामित्र क्रोध में आजाते है ओर दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है। युद्ध बड़ा घमासान होता है। लेकिन ऋषि वशिष्ठ विश्वामित्र पर भारी पड़ने लगते हैं और आखिर में अपने सारे शस्र अस्र  को विफल होता देखते हैं। आखिर में क्रोधित वशिष्ठ ब्रम्हास्र छोड़ते हैं, लेकिन उसका उपाय विश्वामित्र के पास नही होता और वह हताश हो कर खड़े रहते है। यह देख देवता ऋषि वशिष्ठ को समझाते है और उनका क्रोध शांत हो जाता है।वह फिर ब्रम्हास्र को वापिस बुलाते है।
हारे हुए विश्वामित्र ठान लेते है कि वह भी ऋषि बनेगे ओर ओ भी सर्वोच्च ऋषि 'ब्रम्हऋषि ' ।

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विश्वामित्र की तपस्या | Vishvamitra ki Tapasya

वह फिर परमपिता ब्रम्हा की तपस्य करने लगते है। उनकी तपस्या हजार साल चलती है। उनकि तपस्या देख ब्रम्हा प्रसन्न हो जाते है । वह विश्वामित्र को ऋषि का पद बहाल करते है। इसपर वह कुछ नही बोलते। ओर सोचते है कि ब्रम्हऋषि बननेके लिए ओर तपस्या करनी पडेगी । वह पुन्ह: तपस्या करने बेठ जाते है।

Kyo Kiya menka ne vishvamitr ka tapobhang or kese bane vishvamitr bramhrushi
vishvamitra and menaka by raja ravi varma 

मेनका द्वारा विश्वामित्र का तपोभंग |menka dvara Vishvamitra ka tapobhang

इस बात की खबर जब इंद्र देव को लगती हैं। इंद्र देव सोच में पड़ जाते है ,अगर उन्हें एक बार वरदान मिला है तो वह फिर से क्यो तपस्या कर रहे हैं। शायद वह स्वर्ग पर अपना अधिपत्य पाना चाहते है। इस बात से भयभीत हो कर वह अप्सरा मेनका को बुलाते हैं और उसे किसीभी प्रकार विश्वामित्र की तपस्या भंग करने की आज्ञा देते हैं।
ऋषि विश्वामित्र अपने आश्रम से जंगल मे जड़ी बूटियां एकत्रित करने को निकलते है । वह नदी किनारे पोहचते है, तो देखते है एक सुंदर युवती नदी में नहा रही है। उसे देखकर ऋषि विश्वामित्र उसपर मोहित हो जाते हैं। उसके पास जाकर उसे पूछते हैं," हे युवती तुम कोन हो और इस जंगल मे क्या कर रही हो।"
मेनका उत्तर देती हैं," में स्वर्ग की अप्सरा मेनका हूँ ,ओर यहा का नयन रम्य दृश्य देख में जल विहार करने के लिये यहा रुख गई।"
"है सुंदरी तुम मुझे तीनो लोकोमे सबसे सुंदर लग रही हो और में तुम पे मोहित हो गया हूं।"
"यहा कि सुंदरता ही नही यहा के लोग भी अति सुंदर है, में भी आपका तेज देखकर आप पर मोहित हो गई हु।"
उसकी यह बात सुनकर विश्वामित्र उसे अपने साथ आश्रम ले जाते हैं और तपस्या करने का विचार उनके मन से निकल जाता हैं।
मेनका के साथ पति पत्नी की तरह कुछ साल बिताने के बाद उनके यहा एक कन्या का जन्म होता हैं।उसका नाम शकुंतला(pls read the note*) रखा जाता हैं । कुछ साल बाद विश्वामित्र को अपने तपस्या का ध्यान होता हैं। ओर वह खुद पर लज्जित हो जाते है। उन्हें लगता है कि यह सब देवताओंका रचाया षड्यंत्र था। उनकी तपस्या भंग करने के लिए। वह अति क्रोधित हो जाते हैं। उनका क्रोध देख कर मेनका डर से थरथर कापने लगती है। जब वह मेनका को देखते है तो अपना क्रोध काबू में करते है, लेकिन उसे उनके जीवनसे चले जाने की आज्ञा देते है।

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विश्वामित्र का ब्रम्हऋषि पद | Vishvamitra ka bramharushi pad

विश्वामित्र फिर से तपस्या करने लगते है। वह इस बार बिना कुछ खाये अति कठिन तप करते है। एक हजार साल बीतने के बाद जब वह सोचते है कि अब उनकी तपस्या पूरी हुई । तो वह अपना व्रत छोड़ने के लिये खाना खाने बैठते हैं ,तभी एक भिक्षु के रूप में इंद्र वहा आकर उनसे खाने के लिए कुछ मांगता हैं। वह सारा खाना उसे दे देते हैं और  सोचते है ,शायद मेरा तप अभीतक पूरा नही हुवा। ओर वह फिर से तप करने लगते है।तब परमपिता ब्रम्हा प्रसन्न होकर उन्हें ब्रम्हऋषि पद प्रदान करते है। तब वह कहते है अगर यह बात वशिष्ठ ऋषि ने कही तो ही में तप करना बंद करुगा।
जब यह वशिष्ठ ऋषिको पता चलता है तो वह उनसे मिलने आते है और उन्हें ब्रम्हऋषि कहते हैं और उन्हें गले लगाते हैं।
दोने में दोस्ती हो जाती है। पर अब उन्हें किसी बात का मोह नही रहाथा। आगे चलके ऋषि वशिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र दोनो ने ही विष्णु अवतार श्रीराम और लक्ष्मण को ज्ञान दान किया था।

Note*

यह वही शकुंतला ला  है जिनपर महाकवि कालिदास ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् यह महाकाव्य लिखा है। जिसमे शकुंतला और राजा दुष्यन्त  के प्रेम कहानी के बारेमे लिखा है। और उनके पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा है।


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