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कैसे बना एक डाकू वाल्मिकी रामायण का रचेता ? कोन थे वाल्मिकी ऋषि?| Kese bana ek daku valmiki ramayan ka racheta? Kon the valmiki rushi? ( Hindu mythology)

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कैसे बना एक डाकू वाल्मिकी रामायण का रचेता ? कोन थे वाल्मिकी ऋषि?| Kese bana ek daku valmiki ramayan ka racheta? Kon the valmiki rushi? ( Hindu mythology) घरवालोकि बातें सुन मानो उसके पैरों तलेकी जमीन खिसक गई थी। आंखोसे आँसू बहने लगे थे। जो उसे अपने लगते थे, वही अब पराये लगने लगे। जिनके लिए यह सब कियाथा , उन्होंने ही उसे ठुकरा दियाथा। उसका जीवन ही उसे व्यर्थ लगने लगा था। डाकु रत्नाकर का जन्म | daku ratnakar ka janm एक छोटा बच्चा जिसका नाम रत्नाकर था । उसका जन्म एक भील समाज मे हुवाथा । अपने कबीले के साथ वह जंगल मे रहता था। रत्नाकर के माता पिता दिन भर काम पर रहते थे। जिसके कारण रत्नाकर घर मे अकेले रहने लगा। अपनी उम्र के बच्चे के साथ वह खेलने जाता था। लेकिन उसकी संगत अच्छी नही थी। जिसके कारण वह बुराई के मार्गपर चलने लगाथा । पहले तो छोटी छोटी चीजे चुराना उसका शोक हो गया था। कम मेहनत और ज्यादा लाभ उसे मिलताथा । इसलिए वह खुश भी था । आगे चलकर उंसने बड़ी बड़ी चोरियां करना शुरू किया।  कालांतर में उसकी शादी हो गईं । अब परिवार चलाने के लिए वह एक डाकू बन गया। अनेक खून किये, कितनो की लुटा उसकी गिनतिही

क्यो मिला कर्ण को कवच ? और कौन थे नर - नारायण?| kyo mila karn ko kavach ? or kon the nar narayan? (hindu mythology)

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क्यो मिला कर्ण को कवच ? और कौन थे नर - नारायण? kyo mila karn ko kavach ? or kon the nar narayan? (hindu mythology) दंबोधक को सूर्य देव का वरदान। dambodhak ko sury dev ka vardan दंबोधक नाम के राक्षस ने सूर्य की तपस्या करते हुये हजार साल व्यतीत किये। उसकी हजार साल की कड़ी तपस्या देख सूर्य देव को स्वयं उसे वरदान देने के लिये आना पड़ा। सूर्य देव ने कहा ,"दंबोधक में तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हु। बोलो तुम्हे क्या वरदान चाहिए।" दंबोधक सूर्य देव की बात सुन कर बोहत खुश हुवा," उंसने सूर्य देव से कहा मुझे एक हजार कवच चाहिए जो मेरी रक्षा करे, उन्हें तोड़ने की ताकत बस उन्ही लोगोंमें होगी जिन्होने एक हजार साल तप किया हो लेकिन कवच टूटने के बाद ,कवच तोड़ने वालेकी मृत्यु हो जाएगी।" सूर्य देव दंबोधक की बाते सुन चकित रह गये। दंबोधक ने जैसे अमर होने का ही वरदान मांग है ऐसा उन्हें लगने लगा। लेकिन वह तपस्या का फल देने के लिए बाध्य थे। उन्होंने दंबोधक को उसकी इच्छा नुसार वरदान देते हुए कहा ,"तथास्तु !" दंबोधक को वरदान का अहंकार | dambodhak ko vardan ka ahankar दंबोधक वरदान पाकर बोह

कैसे हुवा महामृत्युंजय मंत्र का निमार्ण और कैसे बने ऋषि मार्केंडेय पहले चिरंजीवी ?| kese huva mahmrutunjay mantra ka nirman or kese bane rushi markendiy pahale chiranjivi? (hindu mythology)

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कैसे हुवा महामृत्युंजय मंत्र का निमार्ण और कैसे बने ऋषि मार्केंडेय पहले चिरंजीवी ?  kese huva mahmrutunjay mantra ka nirman or kese bane rushi markendiy pahale chiranjivi? (hindu mythology) कैसे हुवा भगवान दत्तात्रेय का जन्म ? क्यु ली गई माता अनुसुया की परीक्षा ?|kese huva bhagvan dattatreya ka janm ? Kiv li ge mata anusuya ki pariksha?(hindu mythology) महादेव का मृकुण्ड ऋषि को वरदान । Mahadev ka mrukund rushi ko vardan मृकुण्ड ऋषि एक बडे ही तेजस्वी ऋषि थे । वह सर्व ज्ञान सम्पन थे। बस उनके जीवन की एक ही व्यथा थी। शादीके इतने सालो के बाद भी उन्हें कोई पुत्र नही था। मृकुण्ड ऋषि ने और उनकी पत्नी ने महादेव की तपस्या करना शूरी किया । जिससे महादेव प्रसन्न होंगे और उन्हें पुत्र प्राप्ती का वरदान देगे। उनकी यह तपस्या अनेक वर्ष अखंड चली । आखिर कार महादेव उन्हें प्रसन्न हुए । महादेव ने उन्हें दर्शन देके कहा, " ऋषिवर में आपकी तपस्या से प्रसन्न हूँ। आप अपना मन चाहा वरदान मांग सकते हैं।" मृकुण्ड ऋषिने कहा," प्रभु मुजे कोई वरदान नही चाहिये, मुझे सिर्फ आप पुत्र प्राप्तीक आशीर्वाद दीजिय

कैसे हुवा भगवान दत्तात्रेय का जन्म ? क्यु ली गई माता अनुसुया की परीक्षा ?|kese huva bhagvan dattatreya ka janm ? Kiv li ge mata anusuya ki pariksha?(hindu mythology)

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कैसे हुवा भगवान दत्तात्रेय का जन्म ? क्यु ली गई माता अनुसुया की परीक्षा ?|kese huva bhagvan dattatreya ka janm ? Kiv li ge mata anusuya ki pariksha?(hindu mythology) महर्षी अत्रे सप्त ऋषियोमेसे एक माने जाते हैं। उनके पत्नीका नाम अनुसुया था। यह बात तबकी है जब महर्षी अत्रे और माता अनुसुया ब्रम्हा विष्णु और महेश जैसा गुणवान पुत्र पाना चाहते थे। इसके लिए दोनोंही कड़ा तप करने लगे थे। देवी लक्ष्मीकी इर्षा |Devi lakshmi ki irsha एक दिन नारद मुनी माता अनुसूया और महर्षि अत्रे के दर्शन कर सीधे वैकुंठ लोक भगवान विष्णु के दर्शन करने गए। लेकिन उन्हें वाह पर भगवान विष्णु नही मिले। पर उन्हें माता लक्ष्मीके दर्शन हुए। उन्होंने देवी लक्ष्मीको प्रणाम किया। देवी लक्ष्मीने प्रणाम का उत्तर देते हुए कहा," प्रणाम नारद मुनी , आज आप बड़े खुश लग रहे है।" नारद मुनि ने अपने चिरपरिचित लेहजे में कहा," जी देवी बात ही ऐसी खुशी की हुई है, नारायण ,नारायण।" " हमे भी तो बताइए ऐसी कौनसी बात है कि आप फूले नहीं समारहे।" शायद नारदजी इसी प्रश्न का इंतजार कर रहे थे,"आज मेने माता अनुसुया के दर्श

क्यो ली देवव्रत ने भीष्म प्रतीज्ञा और कैसे हुवा शांतनु और सत्यवती का विवाह?| kyo li devvrat ne bhisham pratigya or kese huva satyvati or shantanuka vivah( hindu Mythology)

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क्यो ली देवव्रत ने भीष्म प्रतीज्ञा और कैसे हुवा शांतनु और  सत्यवती का विवाह? kyo li devvrat ne bhisham pratigya or kese huva satyvati or shantanuka vivah ( hindu Mythology) devvrat ki bhisham pratugya by raja ravi varama केसे प्राप्त हुआ सत्यवती को शादिसे पहले पुत्र ?| kese prapt huva satyavtiko shadise pahale putra? देवव्रत का युवराज बनाना | Devvrat ka yuvraj banana देवी गंगाने देवव्रत को शांतनु को सोप दियाथा। अपने पुत्र को पाकर महाराज शांतनु बड़े खुश थे। देवव्रत का आचरण, उसका जनता के प्रति प्रेम, बड़ो के लिए आदर और उसके अनगिनत गुण महाराज शांतनुके मन मे घर कर गए थे। उन्हें अपने पुत्र की योग्यता पर पूरा भरोसा था। उन्होने एक दिन राज सभा बुलाकर देवव्रत को सभी मंत्री यो के सहमतीसे  युवराज घोषित कर दिया । देवव्रत ने पिता की आज्ञा का मान रखते हुए युवराज पद ग्रहण कर लिया। महाराज शांतनु अब धीरे धीरे अपनी सारी जिमेदारी अपने पुत्र देवव्रत पर डालने लगे और राज्य कार्यभार में अपना सहभाग कम करने लगे। अब शांतनु निच्छिन्त थे । उन्हें अपने पुत्र पर पूरा भरोसा था और वह एक महान राजा बनेगा

क्यो दिया देवी कालीने शिव के शरीर पर पेैर ? | kyo diya devi kaline shiv ke sharir par per ( Hindu mythology)

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क्यो दिया देवी कालीने शिव के शरीर पर पेैर ? दैत्य रक्तबीज (यह नाम उसे वरदान के कारण मिलता था जो हम आगे पढेंगे ) ने कठोर तप का प्रारंभ किया था । वह ब्रम्हा को प्रसन्न कर मन चाहा वरदान पाना चाहता था। उसके कठोर तप के कारण देवताओमे भय फै हल गया था। उन्होंने उसका तपोभंग करने के अनेक प्रयास किये पर वह सफल नही हो पाए। उसकी तपस्या देख परमपिता ब्रम्हा उसपर प्रसन्न थे। फिर परमपिता ब्रम्हा ने उसे दर्शन दे कर मन चाहा वरदान मांगने के लिए कहा। makali by raja ravi varma ब्रम्हा द्वारा रक्तबीज को वरदान | bramha dvara raktabij ko vardan उसने ब्रम्हा से कहा," हे परमपिता मुझे अमर होने का वरदान दीजिए।" इसपर परमपिता ब्रम्हा ने कहा ," जिस प्राणीने जन्म लिया है, उसका मरना अटल है। यही विधिका विधान है। में तुम्हे यह वरदान नही दे सकता तुम्ह कुछ ओर मांगो। में अवश्य तुम्हे दूँगा।" यह बात सुनकर रक्तबीज थोड़ा सोच में पड़ गया। उंसने फिर सोचकर कहा," तो आप मुझे ऐसा वर दीजिये ,जब भी कभी मेरे रक्त की एक भी बून्द धरती पर गिरेगी तब उसमेंसे अनेक मेरे तरह राक्षस निकलेगे।" ब्रम्ह द

केसे प्राप्त हुआ सत्यवती को शादिसे पहले पुत्र ?| kese prapt huva satyavtiko shadise pahale putra? ( hindu mythology)

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केसे प्राप्त हुआ सत्यवती को शादिसे पहले पुत्र ? |  kese prapt huva satyavtiko shadise pahale putra? एक दिन ऋषि पराशर यमुना नदी पार करने के लिए एक निषाद के पास पोहचते है । पराशर ऋषि को देख कर निषाद राज बोहत खुश होते हैं। वह ऋषि से विनती करते है की वह उनके साथ उनके घर चले और कुछ दिन उनके साथ रहकर उन्हें सेवाका अवसर प्रदान करे। वैसे तो ऋषि पराशर लंबी यात्रा के कारण थके हुए थे ओर वह उच्च नीच का भेद नही मानतेथे । इसलिए उन्होंने निषाद राज का अतिथ्य स्वीकार किया । निषाद राज की बात मानकर वह उसके घर चले गए। satyavati पराशर ऋषी का निषाद राज द्वारा स्वागत | Parashar rishi ka nishad  dvara swagat निषाद राज का घर एक झोपड़ी समान था। उसने उसके पास ही दूसरी झोपड़ी बनाइ ओर उसमे पराशर ऋषि की रहने की व्यवस्था की। निषाद राज  वैसेतो गरीब थे पर उनकी मेहनत  देख पराशर ऋषि उनपर खुश हो गए। ओर उन्होंने उस झोपडी में रहना स्वीकार किया। निषाद राज की एक कन्या थी। वह उनकी दत्तक कन्या थी अतः वह उसे अपनी सगी कन्या ही मानतेथे। वह भी अपने पिता को मदत करने के लिए यमुना नदी पर नाव चलानेका कार्य करतीथी। उसका नाम