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अभिमन्यु का चक्रव्युह भेदन | Mahabharat me Abhimnuvyu ka Chakraviv Bhedana

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अभिमन्यु का चक्रव्युह  भेदन |  Mahabharat me Abhimnuvyu ka Chakraviv Bhedana  युद्ध चालू हुये बारा दिन हो गए थे । कौरव और पांडव , दोनो ही सेनाकी अपरिमित हानि हो चुकी थी। ओर युद्ध के दसवें दिन महारथी ओर सबके वंदनीय भीष्म पितामह बाणों की  शया पर लेट कर युद्ध को त्याग दियाथा। क्यों किये भगवान विष्णु ने सती के शरीर के टुकड़े और केसे बने शक्तिपीठ? | kyo kiye bhagavan vishanune sati ke sharir ke tukade or kese bane shakti pith द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्युह रचना  भीष्म के गिरने के बाद यह धर्म युद्ध अब धर्म युद्ध नही रहथा। कोन क्या करेगा कह नही सकते थे।इस युद्ध को जल्दीसे जलदी खत्म करने के लिए कौरव सेनाके नए सेनापति द्रोणाचार्य ने अपना पूरा ध्यान युधिष्टर पेर केंद्रित करने की ठान ली थी। युधिष्ठिर को पकड़ने के बाद युद्ध तो वैसेही खत्म हो जाता। इसलिए उन्होंने युद्ध के तेरहवे दिन नया विव्ह रचा उसे चक्रव्युह  कहते थे। लेकिन उनके सामने एक समस्या थी, अर्जुन। अर्जुन चक्रव्युह को भेदना भली भांति जाणतात था। तो उन्होंने तय किया कि चक्रव्युह की रचना करने से पहले वह अर्जुन को युद्ध मे किसी दूर ज

क्या भगवान श्रीकृष्ण की 16008 पत्नी या थी? | bhagwan shri krishna ki kitni patniya thi ?

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क्या भगवान श्रीकृष्ण की 16008 पत्नी या थी? |  bhagwan shri krishna ki kitni patniya thi? bhagavan krushna krishna ki patniyo ke naam ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की 16008 पत्निया थी । और इसके बारेमे कुछ कहानिया भी प्रचलित हैं। अगर कहा जाए तो श्रीकृष्ण की आठ पत्निया थी उनके नाम रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिंदी, मित्रविंदा, नाग्नाजिती, भद्रा और लक्ष्मणा थे। उनमेंसे रुक्मिणी श्रीकृष्ण की मुख्य रानी मानी जाती है। अब आतेहै 16000 पत्नी यो पर...... केसे मिला कर्ण को परशुराम का शाप? | kese mila karn ko parshuram ka shap? story of 16000 wives of krishna in hindi द्वापरयुग में भारत के उत्तरपूर्व की ओर नरकासूर नामक राक्षस राज्य करतात था। वह बड़ा शक्तिशाली था । उसने अपने आसपास के सभी राज्योको अपने अधीन कर लिया था और उसने उस राज्य की राजकुमारी ओर रानीयो को बंधी बना लियाथा। वह बस वही तक नही रुका उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर इंद्रा को हराया था। और उसके बाद देव माता अदिति के कान की बालिया लेकर भाग गयाथा ओर जब उसने पाताल पर आक्रमण किया तो उसने वरुण देव का शाही छाता अपने विजय क

कंस ने क्यो अपनी बहन को बंधी बनाया ?और कृष्ण जन्म कथा.| kans ne kiv apni bahan ko bandhi banaya or krushan janm katha

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कंस ने क्यो अपनी बहन को बंधी बनाया ?और कृष्ण जन्म कथा. द्वापरयुग में पाप बढ़ रहाथा इस कारण वश धरती के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने धर्म रक्षा के लिए नया अवतार लिया जो भगवान कृष्ण के नाम से प्रसिद्ध है । उनके जन्म की एक अनोखी कहानी है। कंस का पिता  विरोध  द्वापरयुग में उग्रसेन नामक राजा मथुरा पर राज्य कराता था।  राजा स्वभाव शांत थे और प्रजा में प्रिय भी थे। लेकिन उनका पुत्र कंस ठीक उनके विपरीत था ।वह स्वभावसे ही कपटी ओर छली था। वह मायावी होने के साथ साथ के राक्षोसोका स्वामी ओर मित्र भी था। उसके पिता उग्रसेन के बाद राज पाठ सभी उसीका होने वाला था। पर वह इतना इतजार नही कर सका और अपने पिताके खिलाप उठाव कर उन्हे बंदी बनालिया ओर कारावास में डाल दिया। जिस किसीने भी उसके खिलाफ आवाज उठाई उसे मार दिया गया। ओर कंस मथुराक राजा बन गया। बाल कृष्ण  क्यों हुआ समुद्र मंथन ? क्यों छोड़ दिया माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को? | kyo huva samudra manthan? kiv chhod diya devi laximine bhagvan vishnuko?  बहन और बहनोई को कारागार  वह स्वभाव से केसा भी हो पर वह अपनी बहन देवकीसे बड़ा स्नेह करता था। उसने

क्यों हुआ समुद्र मंथन ? क्यों छोड़ दिया माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को? | kyo huva samudra manthan? kiv chhod diya devi laximine bhagvan vishnuko?

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क्यों हुआ समुद्र मंथन ? क्यों छोड़ दिया माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को? एक बार दुर्वासा ऋषी स्वर्ग से लोट रहेथे तभी उन्हें आते हुए इन्द्र देव दिखे। वह हाथी पर सवार थे ।उन्हें देखकर उन्हें लगा कि यह भगवान विष्णु ही है। इसलिए उन्होंने उनके तरफ फूलोकी माला फेकी लेकिन इन्द्र ने उन्हें अनदेखा किया ओर माला उनके हाथी एरावत पर गिरी ओर उसने वह माला झटककर नीचे गिर दी ओर अपने पैरो तले रोंदी। यह देख कर ऋषी को क्रोध आया ओर उन्होंने उसे शाप दिया कि वह श्री हिन ओर शक्ति हिन हो जायेगे। तब इंद्र को सारी सम्पत्ति सागर  में गिर गए ओर उसके साथ ही उसकी शक्तियां भी चली गई । ओर वहीं देवी लक्ष्मी भी सागर में चली गई । असुरोको जब यह पता चला कि इंद्र शक्ति हिन हो गया है , तब उन्होंने स्वर्ग पर आक्रमण कर स्वर्ग पर अपनी सत्ता स्थापित की ओर सभी देवतावो को स्वर्ग से हकाल दिया। क्यों किया महादेव ने कामदेव को भस्म ओर केसे हुआ शिव पार्वती विवाह?| kyo kiya madev ne kamdev ko bhasm or kese huva shiv parvati vivah? samudra manthan सारे देवता पराजय ओर स्वर्ग हात से जाने के कारण मदत मांगने के लिए भगवान विष्ण

क्यों किया महादेव ने कामदेव को भस्म ओर केसे हुआ शिव पार्वती विवाह?| kyo kiya madev ne kamdev ko bhasm or kese huva shiv parvati vivah?

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क्यों किया महादेव ने कामदेव को भस्म ओर केसे हुआ शिव पार्वती  विवाह? महादेव सती के मृत्यु के बाद उसका शरीर लेकर चारो और घूम रहे थे तब विष्णु ने उनके टुकड़े कर के शरीर को नष्ट कर दिया । जब महादेव ने देखा कि ओ अब ऐसे ही घूम रहे है तब वह एक जगह रुख गए ओर उन्होंने एक गुफा अपना निवास स्थान बना लिया। जहा पर वह समाधि लगाकर बैठ गए । उस समय राक्षसो का राजा तारकासुर था।उसने ब्रम्हा की घोर तपस्या की ओर उन्हें प्रसन्न कर लिया।तब ब्रह्माजी प्रगट हुए ओर उन्होंने तारकासुर से वरदान मांगने के लिए कह, तारकासुर बड़ा चालख था उसने कहा , "मेरी मृत्यु सिर्फ भगवान शिव के पुत्र के द्वारा ही  होगी।" तो ब्रम्हा ने उसे यह वरदान दिया कि उसकी मृत्यु सिर्फ भगवान शिव के पुत्रके हातों होगी। तारकासुर को पता था कि महादेव सती की विरह में है और अब किसिभी परिस्थिति में शादी नहीं करेंगे तब उनका कोई पुत्र नहीं होगा ओर उसकी कभी मृत्यु भी नहीं होगी। shiv parvati क्यों किये भगवान विष्णु ने सती के शरीर के टुकड़े और केसे बने शक्तिपीठ? | kyo kiye bhagavan vishanune sati ke sharir ke tukade or kese bane

क्यों किये भगवान विष्णु ने सती के शरीर के टुकड़े और केसे बने शक्तिपीठ? | kyo kiye bhagavan vishanune sati ke sharir ke tukade or kese bane shakti pith

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क्यों किये भगवान विष्णु ने सती के शरीर के टुकड़े और केसे बने शक्तिपीठ? जब ब्रम्हा जी ने आदि शक्ति ओर महादेव के विवाह के विषय में सोचा तो उन्होंने अपने पुत्र प्रजापति दक्ष को आदेश दिया कि वह देवी की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करे ओर उन्हें अपनी पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगे। ब्रम्हा जी के आज्ञा के अनुसार दक्ष प्रजापति देवी की उपासना करते है ओर देवी उन्हें प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं कि वह उनके पुत्री के रूप में जन्म लेगी।  लेकिन वह प्रजापति को कहतिए, " में हर  जन्म में महादेव की अर्धागिनी रहूंगी ओर   तब तक तुम्हारी पुत्री के रूप में रहुगी जब तक तुम्हारा तपस्या का पुण्य है ओर जब तुम्हारे द्वारा मेरा अपमान होगा तब में अपने धाम लोट जाउगी।" उनकी यह बात दक्ष मान लेते है। महादेव  शिव को क्यों कहा जाता हैं अर्धनारिश्वर ? | shiv ko kiv kaha jatahe ardhnari shwar ? महादेव और सती विवाह  उसके बाद आदि शक्ति दक्ष के घर जन्म लेती हैं। उनका नाम सती रखा जाता हैं। लेकिन उनको दिए गए वचन को दक्ष भूल जाते है। ओर सोचते हैं शिव किसी भी प्रकार से उनके लिए योग्य

शिव को क्यों कहा जाता हैं अर्धनारिश्वर ? | shiv ko kiv kaha jatahe ardhnari shwar ?

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शिव को क्यों कहा जाता हैं अर्धनारिश्वर ? इस के बारे मैं वैसे कहीं कहानियां प्रचलित है , इन मेसे में आपको मेरी पसंदीदा कहानी बताने वाला हूं। जब ब्रम्हा , विष्णु ओर महेश का जन्म हुआ। उसके बाद कहीं साल बीत गए ,तब तीनों ने मिलकर विश्व की रचना करने का सोचा। विश्व के रचना का कार्य ब्रम्हदेव के पास दिया गया। ब्रम्हा ने रचना कार्य शुरू तो किया लेकिन वह उतनी शक्ति इस कार्य में डालना चाहिए वह नहीं डाल सके, इसलिए वह शिव जी के पास गए ,ओर उन्होंने उनके सामने अपनी समस्या रखी । इस पर शिव जी ने अपनी आधी शक्ति निकाल कर उन्हें दी ओर उन्हासे कहा कि आप मेरी शक्तिसे संसार का निर्माण कर सकते है। ब्रम्हा जी ने उन्हें वचन दिया कि कार्य पूरा होने के बाद वह शक्ति उन्हें लोटा देगे। ardhnariswar/ nataraj महादेव पर शनि की दृष्टी का प्रभाव ।  संसार का निर्माण  फिर ब्रम्हा जीने उस शक्तिसे सारे संसार का निर्माण किया। उसमे मनुष्य,पशु पक्षी, देवता, राक्षस, गंधर्व, पेड़ पोधे इ शामिल थे। इस तरह वह शक्ति प्रकृती के हर वस्तु में वास करती हैं इसलिए प्रकृति चलती हैं इसलिए वह शकती स्वयं प्रकृति है ऐसा भी कहा

भगवान विष्णु ने क्यों लिया वामन अवतार? | bhagavan vishnune kyu liya vaman avatar

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भगवान विष्णु ने क्यों लिया वामन अवतार? असुर राज बली ने अपने सामर्थ्य के बल पर तीनों लोक पे अपना राज्य प्रस्तापित की या था । वह असुर राज तो था ही लेकिन एक ज्ञानी ओर महा पंडित एवं विष्णु का परम भक्त था। हम ये कह सकते है कि उसे भक्ति अपने दादाजी प्रल्हाद से मिलीथी जिनके लिए स्वयं भगवान विष्णु अवतार धारण कर धरती पर आयेथे। वह असुर राज होते हुए भी पृथ्वी लोक पर लोगोके लिए अति प्रिय थे। वह संत ,महात्मा ,ऋषी,मुनी गरीब लोगोंको दान धर्म करके धर्म के मार्ग पर अग्रेसर थे। इसमें  उनके गुरु शुक्राचार्य का भी बड़ा योगदान था। लेकिन इताना सब होते हुए भी उनसे एक तबका खुश नहीं था। उनमें मुख्य कर स्वर्ग से निकाले गए देवता थे । वह हर प्रकार से प्रयास कर रहे थे कि राजा बलि को केसे भी करके हराया जाना चाहिए । पर उसके शक्ति के सामने उनकी एक भी ना चलती । ओर छल कपट से तो असुर राज भलीभांति वाकिफ थे । तो ओ रास्ता भी बंद हो गया था। देवो ने अनेक जगहों से मदत लेनी चाही पर उन्हें  मदत नहीं मिल पाई। वामन  क्यों दिया राम ने लक्ष्मण को मृत्यु दंड? | Kyo diya ram ne lakshiman ko mrutuv dand? माता अदिति की प

क्यों दिया राम ने लक्ष्मण को मृत्यु दंड? | Kyo diya ram ne lakshiman ko mrutuv dand?

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क्यों  दिया राम ने लक्ष्मण को मृत्यु दंड? एक दिन एक ऋषी श्री राम को मिलानेके लिए आते है। ऋषी मुनी का आदर सत्कार करते हूं ये वह ऋषी से आनेका प्रयोजन पूछते हैं। इस बात पर ऋषी कहते है कि में बड़े दूर से आया हूं ओर मुझे आपसे एकांत में बात करनी है बात अती महत्त्व पूर्ण है। राम ऋषी का आदर  करते हुए बोलते हैं जी हां हम दूसरे कक्ष में जा के बातें करते है। इस पर वह ऋषी कहते है जब हमारी बातें चल रही होगी तब कक्ष में कोई नहीं आयेगा ऎसी आप आज्ञा दीजिए। राम ऐसे ही आज्ञा देते है। पर इस पर भी उनका समाधान नहीं होता इसलिए वह कहते है जब हमारी बाते चल रही होगी तब अगर कोई अंदर आएगा तब आप उसे  मृत्यु दंड देगे। राम बोलते इस की को जरूरत नहीं ,पर ऋषी अपने बात पर अडिग रहते है। तब राम उनको वचन देते हैं जो अंदर आयेगा उसे वह मृत्यु दंड दीया जाए गा। राम लक्ष्मण  श्रेष्ठ दानी कर्ण कीव है ? ऋषि दुर्वासाका  आगमन  राम लक्ष्मण को सब बताते है ओर कहते है आप खुद ही द्वारपाल बन के खड़े रहीए जिससे आपकी अवज्ञा करनेकी हिम्मत कोई नहीं करेगा। लक्ष्मण खुद द्वारपाल बन जाते है।  वह ऋषी ओर श्रीराम अंदर चले जाते है

द्रोणाचार्य पांडवो ओर कौरव के गुरु केसे बने? | kese bane dronachry pandoke guru?

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द्रोणाचार्य पांडवो ओर  कौरव के गुरु केसे बने? एक दिन सब पांडव कौरव मिलकर खेल खेल रहे थे। वह एक कपड़े की बनी गेंद से खेल रहेथे । खेल में वह एक दुजेको गेंद मारकर जिसे गेंद लगी वह खेल से बाहर हो जतहे इस प्रकार खेल रहेथे।वह जहां पर खेल रहे थे वहा पास ही पर एक कुवा था। खेलते खेलते अचानक उनकी गेंद कुवेमे गिर जातिहे। सब राजकुमार कुवे के पास एकत्रित हो जाते है। वह अब गेंद केसे निकले इस पर विचार विमर्श करने लगते है। ओर अलग अलग प्रयास कर के वह गेंद निकालने की कोशिश करते है उनके सब  प्रयास में असफल होते है। ओर सब नाराज होकर वहा खड़े होते है। dronachary award  द्रोणाचर्य कुमारोंसे मिले  उसी समय एक ब्राम्हण की नजर उनापर गिरती हैं। वह ब्राम्हण उनके पास जाकर पूछा ता क्या हुआ है। सबकी नजर ब्राम्हण पर गिरती हैं।ब्राम्हण ने फटे पुराने कपड़े पहने होते है। बच्चें पहले तो चोक जाते है। फिर सारी बातें वह ब्राम्हण को बता दे ते है। उनकी बात सुनकर ब्राम्हण केहता हैं, "बच्चो कोई चिंता मत करो में तुम्हारी गेंद निकालकर दुगा।" वह एक धनुष लेकर तीर चलाते है, वह तीर गेंद पे जाकर लगता ह

केसे मिला कर्ण को परशुराम का शाप? | kese mila karn ko parshuram ka shap?

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केसे मिला कर्ण को परशुराम का शाप? अर्जुन को बड़े बड़े ज्ञानी ऋषि मुनि योसे शिक्षा मिलिथी इसके साथ ही इन्द्र ओर भगवान शिव के आशीर्वाद के रूप में उन्होंने बड़े बड़े अस्त्र ओर शस्त्र मिले थे। परन्तु कर्ण को नहीं किसी बड़े ऋषि मुनि से शिक्षा मिलित थी नहीं को अस्त्र  उनके पास थे । थे तो सूर्य देव द्वारा दिए गए कवच कुंडल। कर्ण को अपनी इस कमी से उभरने के लिए  किसी बड़े ज्ञानी द्यारा शिक्षा पाना जरुरिथा। इसलिए वह गुरु की खोज में चल पड़े । भ्रमण करते करते   वह महिंद्रा पर्वत पर पोहाच गए। महिंद्रा पर्वत   कर्ण  परशुराम भेट  वहा पोहाचने पर उन्हें पता चला भगवान  परशुराम का   निवास इसी पर्वत पर है। ओर उन्हें पता था की वह एक महान ज्ञानी ओर शस्त्र विद्या के जानकार है। साथ ही वह भीष्म पिता महा के गुरु भी है। ओर वह उनसे सीखना चाहते थे। इसलिए वह उनके आश्रम की खोज में महेंद्र पर्वत पर जाते हैं। उन्हें वहा उनका आश्रम मिलता है। ओर कुछ प्रयास करने के बाद उनकी मुलाक़ात गुरु परशुराम से हो जतीहे। वह उनसे कहते हैं। "है मुनि श्रेष्ठ में आपसे विद्या ग्रहण करने के लिए आयाहू, कृपया मुझे आपका

श्रेष्ठ दानी कर्ण कीव है ?

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श्रेष्ठ दानी कर्ण कीव है ? यह कहानी तबकी है जब अर्जुन और कर्ण में से  कोंन श्रेष्ठ है, इसकी चर्चा हस्तिनापुर में हुआ करती थी । अर्जुन खुदको श्रेष्ठ धनुर्धर माना करते थे। और शायद ओ थे भी , कींव ना हो उनके गुरु द्रोणाचर्य उन्हें दुनियका श्रेष्ठ धनुर्धर कह ते थे। और आजतक उन्हें कोई ऐसा ना मिलाथा, जो उन्हें परास्त कर सके। इससे ओ खुश भी थे पर उन्होंने ये बात बार बार सताती थी कर्ण सबसे श्रेष्ठ दानवीर है। लोग उन्हें दानवीर कर्ण केहतेथे। यह बात उन्हें चुबतिथी। कृष्ण और अर्जुन  इस बात को लेकर वह कृष्ण से मिलते है। और उनसे कहते हैं "प्रभु में एक राजकुमार हूं और में कर्ण से ज्यादा दान कराताहु पर सभी कर्ण को दानवीर कहते हैं, लेकिन में उससे ज्यादा दान करता हूं इसलिए में श्रेष्ठ दानी हूं।" यह बात सुनकर कृष्ण कहते है , "ठीक है, कल सुबह तुम मेरे साथ आना ।" अर्जुन दूसरे दिन कृष्ण के सात जाते हैं। कृष्ण उन्हें बोहत सरा सोना देतेहे और कहते हैं। यह तुम गरीबों में बाट दो। यह सुनकर अर्जुन अपने हतोसे हर एक गरीब को सोना देने लगते हैं। सोना दान करते हुए शाम हो जाती हैं ,औ

महादेव पर शनि की दृष्टी का प्रभाव ।

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शनि की दृष्टी का प्रभाव कैसे होताहै । एक दिन नारद मुनि आकाश मार्ग से भ्रमण कर रहेथे । वो अपने नियमित दिन चर्यासे ऊब गए होते हैं। उन्हें रास्ते मे शनि देव मिलतेहै । वह सोचतेहै कुछ अलग किया जाए। जब शनि देव उन्हें देखते है तो बोलते है "प्रणाम मुनिवर " "प्रणाम शनिदेव, आप कहा जा रहे है?" "में तो एसेही भ्रमण पर निकला हु। आप बताइए आप कह निकले है।" " में क्या योगी हु ,जहा रास्ता ले जाए वह जाता हूं, रास्ते से याद आया क्या आप महादेव से मिलने गए है क्या, ओ आपको याद कर रहेथे।" "यह तो मेरा सौभाग्य है कि स्वयं भगवान भक्त को बुला रहेहैं।में कल ही उनसे मिलूंगा।" और दोनों अपने अपने मार्ग जातेहै । महादेव  इसके बाद नारद मुनि महादेव से मिलने जातेहै। और उन्हें बतातेह की कल शनिदेव आपसे मिलने वालेहे । यह सुनकर महादेव पुचतेहै क्या कोई विशेष कार्य हैं क्या? इस पर नारद मुनि बोलतेह नही प्रभु, पर एक चिंतकी बात तो है। "केसी चिंता नारद मुनि" "जिस पर भी शनिदेव की दृष्टि पडतीहै , उनके पीछे उनकी साडे साती लग जातीहै , मुझ

अहिरावण ओर क्या हनुमान जी को पुत्र था ?

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अहिरावण ओर क्या हनुमान जी को पुत्र था ? प्रभु राम और रावण युद्ध के दौरान एक वक्त ऐसा आया की रावण को लगने लगा अब उसकी हर निच्छित है। उसका पुत्र मेघदूत जिसने इंद्रा को हराया था। ओ भी अब लक्ष्मन के हातो मारा गयाथा । ओर उसका भाई कुंभकरण भी मारा गए था। वह अब निराश ओर दुख से भर गया था । तभी उसे अपने दोस्त अहिरावण को याद  आई । अहिरावण रावण का दोस्त तो थाही उसके साथ मायावी शक्तियोका स्वामी भी था। अहिरावण उसी वक्त रावण से मिलने आया। वह रात का समय था । अहिरावण ने जब रावण की सारी स्थिति देखी तो उसने उसे वचन दिया कि में आज रात ही राम और लक्ष्मण को कैद कर लेगा और पाताल कि देवी को बलि चढ़ा देगा तुम्हें फिक्र करने की कोई बात नहीं है। हनुमान  अहिरावण राम के खेमे में रूप बदलकर घुसता है। वह राम की कुटिया में जाकर अपनी माया से राम ओर लक्ष्मण को बेहोश कर देता है। ओर उन्हें अपने साथ पाताल लोक ले  जाता हैं। जब राम और लक्ष्मण की गायब होने की खबर सबको मिलती है तो सब उन्हें धुड़ने लगते हैं। पर उन्हें ओ कहीं पे भी नहीं मिलते।इस बात का समाचार जब विभीषण को लगता है तो वह हनुमान जी से कहते है। यह